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"मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं / नवीन सी. चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
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मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं
इन के घेरे में गुलाबों सा खिला रहता हूँ मैं
फैलने के बावजूद उभरा हुआ रहता हूँ मैं
नैन-का-जल हूँ सो आँखों में सजा रहता हूँ मैं
तेरे दिल में रहने से मुझको नहीं कोई गुरेज़
गर तू मेरे हक़ में कर दे फ़ैसला - रहता हूँ मैं
देख ले सब कुछ भुला कर आज़ भी हूँ तेरे साथ
तेरी यादों की सलीबों पर टँगा रहता हूँ मैं
उन पलों में जब सिमट कर चित्र बन जाती है वो
फ्रेम बन कर उस की हर जानिब जड़ा रहता हूँ मैं
क्यूँ न मेरे जैसे जुगनू से ख़फ़ा हो माहताब
उस की प्यारी चाँदनी को छेड़ता रहता हूँ मैं
आने वाला वक़्त ही ये तय करेगा दोसतो
मुद्दआ बनता हूँ या फिर मसअला रहता हूँ मैं