भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कम से कम इक बार तो मेरी चले / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=अंग...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:51, 24 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण

कम से कम इक बार तो मेरी चले
दस दफ़ा गर आपकी मर्ज़ी चले

कितना मीठा बोलता है मुझसे वो
जान ही ले ले अगर उसकी चले

सर से ऊपर जा रही हैं क़ीमतें
कैसे घर की रोटी-तरकारी चले

ले तमंचे और गुण्डे साथ में
ये कहाँ गाँधी के अनुगामी चले

तब समझ लेना कि आया इन्क़लाब
शेर से लड़ने को जब बकरी चले

चाहते सब हैं, रहें हरदम जवाँ
वक़्त के आगे भला किसकी चले

दस क़दम मैं बढ़ चुका उसकी तरफ़
दो क़दम मेरी तरफ़ वो भी चले

ऐ ‘अकेला’ ये दिया बुझना ही था
कब तलक बिन तेल की बाती चले