भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम साँस के सिक्के उछालती रहना / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:40, 26 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
तुम साँस के सिक्के उछालती रहना
मैं गले का गुल्लक सम्भाले रक्खूँगा
तुम धमनियों में धीमा लहू बन जाना
मैं टूटी धड़कनों को सीने में चिपकाऊँगा
तुम आँख के आँगन में छुपा लेना मुझे
मैं अपनी उम्र सारी खेलकर गुज़ारूँगा
पीली धूप से जब तुम पकाओगी मौसम
लम्हा तोड़कर मैं लम्बा छाता बुन लूँगा
सूखी बारिश से जब टूटेगा प्यासा पानी
तुम्हारे होंठ के बारे में फिर से सोचूँगा
गीली रेत में जिस तरह बूँद बसती है
तुम्हारे जिस्म में अपना वजूद खोजूँगा
तुम साँस के सिक्के उछालती रहना
मैं गले का गुल्लक सम्भाले रखूँगा