भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूर्यास्त / किरण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण अग्रवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
ज्यों इन्सान के चेहरे के पीछे
 
ज्यों इन्सान के चेहरे के पीछे
 
इन्सानियत ।
 
इन्सानियत ।
</poem
+
</poem>

01:56, 6 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

महानगर के पीछे
सूरज डूब गया

गटर में
काला पड़ गया आसमान

ज्यों इन्सान के चेहरे के पीछे
इन्सानियत ।