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"प्रणय राग / श्याम कश्यप" के अवतरणों में अंतर

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22:28, 20 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

तुम्हारे सीने के नर्म
घोंसले से बाहर फुदक
चहकने लगे हैं नन्हे दो तीतर

तीखी चोंच उनकी
नुकीली बर्छी-जैसी
मेरे दिल में अटक गई है बिंधकर ।

मेरी बाँहों में बंधी कसकर
चिपकी होठों से निश्शब्द
कुछ ऊपर उठ आई हो विकंपित

जहाँ आत्मा की परछाईं
दो जिस्मों के भीतर गिर रही है
काँपती हुई लौ में थरथराती-सी !

जैसे दूर किसी जल-प्रपात का शोर
बह रहा हो धीमा-
असंख्य-अनंत बूँदों में
टूट कर बिखरने से पेश्तर ।