"यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की / विमल राजस्थानी" के अवतरणों में अंतर
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
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यह भी सच-बदल गये है चंद सुराजी | यह भी सच-बदल गये है चंद सुराजी | ||
है यत्र-तत्र बाजार गर्म ‘चाँदी’ का | है यत्र-तत्र बाजार गर्म ‘चाँदी’ का | ||
− | + | आदर्श खटाई में फूला ‘गाँधी’ का | |
यह पर्व व्यक्ति का नहीं, राष्ट्र की थाती | यह पर्व व्यक्ति का नहीं, राष्ट्र की थाती | ||
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यदि नहीं, पुतेगा चेहरों पर अलकतरा | यदि नहीं, पुतेगा चेहरों पर अलकतरा | ||
शासित जैसे होंगे, शासक भी होगा | शासित जैसे होंगे, शासक भी होगा | ||
− | + | यह घड़ी न आदर्शों का शव ढोने की | |
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की | यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की | ||
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की | यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की | ||
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जिसको तुमने अब तक अंतर में पाला | जिसको तुमने अब तक अंतर में पाला | ||
सुलगाये रक्खो असंतोष की ज्वाला | सुलगाये रक्खो असंतोष की ज्वाला | ||
− | टूटेगा | + | टूटेगा निश्चय अहंकार शासन का |
है देर तुम्हारे ही जाग्रत होने की | है देर तुम्हारे ही जाग्रत होने की | ||
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‘हड़ताल’ पीठ में छुरी चुभाना ही है | ‘हड़ताल’ पीठ में छुरी चुभाना ही है | ||
अधबुने नीड़ पर वज्र गिराना ही है | अधबुने नीड़ पर वज्र गिराना ही है | ||
− | मत दो मौका | + | मत दो मौका दुश्मन को खुश होने का |
मिल-जुल कर नीड़ बनाओ तुम सोने का | मिल-जुल कर नीड़ बनाओ तुम सोने का | ||
चाँदी की चिडि़या जिस में चह-चह बोले | चाँदी की चिडि़या जिस में चह-चह बोले | ||
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यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की | यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की | ||
− | + | दुश्मन की आँखों में बनकर चिनगारी | |
दप-दप दीपेगी ही केसर की क्यारी | दप-दप दीपेगी ही केसर की क्यारी | ||
− | यह | + | यह देश ‘ताँतिया टोपे’ का ‘मंगल’ का |
− | यह | + | यह देश जिसे सम्बल है गंगाजल का |
भारत की हर नारी ‘झाँसी की रानी’ | भारत की हर नारी ‘झाँसी की रानी’ | ||
उतरा न अभी भी तलवारों का पानी | उतरा न अभी भी तलवारों का पानी |
14:58, 31 जनवरी 2013 के समय का अवतरण
फूलों के बदले न अश्रु तुम मा के पद पर डालो
ओ भूखे इंसान ! डगमगाते ये चरण सँभालो
यह घड़ी मगन होने की
यह घड़ी विहँसने की, न अरे रोने की
यह घड़ी नहीं रोने की
सच है-दाने-दाने की है मोहताजी
यह भी सच-बदल गये है चंद सुराजी
है यत्र-तत्र बाजार गर्म ‘चाँदी’ का
आदर्श खटाई में फूला ‘गाँधी’ का
यह पर्व व्यक्ति का नहीं, राष्ट्र की थाती
तुम आज गर्व से दुगनी कर लो छाती
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की
यह घड़ी विहँसने की, न अरे रोने की
यह घड़ी नहीं रोने की
सबसे पहले तुम अपना हृदय टटोलो
तुम भी कितने पानी में हो, यह बोलो
यदि तुम भी अनाचार से ही चिपटे हो
आकंठ पंक में पापों के लिपटे हो
अधिकार नहीं है तुम्हें कि तुम मुँह खोलो
अधिकार नहीं है तुम्हें कि तुम कुछ बोलो
टालो सिर पर सवार पापों का खतरा
यदि नहीं, पुतेगा चेहरों पर अलकतरा
शासित जैसे होंगे, शासक भी होगा
यह घड़ी न आदर्शों का शव ढोने की
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की
नन्हे नौ वर्षों के जीवन को देखो
सँवरे-से अपने नंदन वन को देखो
देखो पेरिस-लंदन की उन गलियों में
होते भारत के अभिनंदन को देखो
जिसको तुमने अब तक अंतर में पाला
सुलगाये रक्खो असंतोष की ज्वाला
टूटेगा निश्चय अहंकार शासन का
है देर तुम्हारे ही जाग्रत होने की
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की
निर्माण-यज्ञ हो रहा, बनो तुम होता
तिनके चुन-चुन कर पूरा कर लो खोता
फिर बाँट बराबर लेना दाना-पानी
यह यज्ञ भ्रष्ट करना तो है नादानी
‘हड़ताल’ पीठ में छुरी चुभाना ही है
अधबुने नीड़ पर वज्र गिराना ही है
मत दो मौका दुश्मन को खुश होने का
मिल-जुल कर नीड़ बनाओ तुम सोने का
चाँदी की चिडि़या जिस में चह-चह बोले
‘सुहरावर्दी’ के कानों में रस घोले
गंदे दाँतों को पीस, मुष्टिका ताने
उस रस को वह नादान भले विष माने
हम नया समाज बनायेंगे निष्चय ही
परवाह नहीं हमको हँसने-रोने की
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की
दुश्मन की आँखों में बनकर चिनगारी
दप-दप दीपेगी ही केसर की क्यारी
यह देश ‘ताँतिया टोपे’ का ‘मंगल’ का
यह देश जिसे सम्बल है गंगाजल का
भारत की हर नारी ‘झाँसी की रानी’
उतरा न अभी भी तलवारों का पानी
‘वर्धा’ के संत गये, नर-नाहर तो है
हैं ‘राम’ गये, ‘सौमित्र’ जवाहर तो है
शेषावतार जिस दिन हुंकार करेगा
पद-रज बन जायेगी लंका सोने की
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की