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"धुँआ (35) / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर

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क्या इस कविता की पंक्तियों से
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इस धुएँ का सबसे बड़ा कारण
धुएँ का भाव साफ होकर
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यह है कि  मानवता का हृदय
समाज के सामने आ सकेगा
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समाज में छिन्न-भिन्न हुआ पड़ा है
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और सब लिए फिरते हे इन टुकड़ों को
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और उससे भी विचित्र
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कोई पहचान नहीं रह गई इन टुकड़ों की
  
भाव समझ भी लिया यदि मानव ने
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किसी को महसूस नहीं हुआ
क्या उसे अर्थ दे सकेगा
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कि ये रो रहे हैं
या फिर उसे मंचो पर सुनाकर
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‘‘हम टुकड़े नहीं वस्तु के
मानवता की दुहाई देकर
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हम टुकडे़ हैं दिल के
चुपचाप उन्हीं गलियों में वापिस जाकर
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दिल जो किसी मां का है
इसी धुएँ में रहने का  
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मां जिसने सभी धर्मों को जन्म दिया
आदि तो नहीं हो जाएगा
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यदि होगा, क्योंकि यह भाव नया नहीं है
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जोड़ो इनको, जो जोड़ सको
न ही धर्म ग्रन्थों के उपदेशों से ज्यादा मूल्यवान है
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इससे पहले कि धड़कते टुकड़े
यदि समझ सकते हो गहराई
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कहीं धड़कना न बंद कर दें ।
धार्मिक उपदेशों  के दार्शनिकता की
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न उठता प्रश्न सपने में भी
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इन्हीं धड़कनों में
इस धुएँ के उद्गम का ।
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धड़कते हैं, दिल असंख्य ।
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महसूस करो धड़कन इन टुकड़ों की
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आवाज सुनो उनके रोने की ।
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वो रो नहीं रहे, रहे हैं भर सिसकियां
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सिसकियां जो दबकर रह गई है
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धर्म के झुठे नारों में ।
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नारे जो हल्ला कर रहे हैं
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जिसमें नहीं कोई राग, विराग का ।
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हो जाओ पूरे वैरागी पाओगे ये टुकड़े
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किसी वस्तु के नहीं, बल्कि मानवता के हैं ।
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यह उतना ही कट्टर सच है
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जितना कोई कट्टर धार्मिक
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इसलिए सच्चा कट्टर धार्मिक वही होगा
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जो इस धुएँ का दुश्मन होगा
 
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09:18, 8 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

इस धुएँ का सबसे बड़ा कारण
यह है कि मानवता का हृदय
समाज में छिन्न-भिन्न हुआ पड़ा है
और सब लिए फिरते हे इन टुकड़ों को
और उससे भी विचित्र
कोई पहचान नहीं रह गई इन टुकड़ों की ।

किसी को महसूस नहीं हुआ
कि ये रो रहे हैं
‘‘हम टुकड़े नहीं वस्तु के
हम टुकडे़ हैं दिल के
दिल जो किसी मां का है
मां जिसने सभी धर्मों को जन्म दिया ।

जोड़ो इनको, जो जोड़ सको
इससे पहले कि धड़कते टुकड़े
कहीं धड़कना न बंद कर दें ।

इन्हीं धड़कनों में
धड़कते हैं, दिल असंख्य ।

महसूस करो धड़कन इन टुकड़ों की
आवाज सुनो उनके रोने की ।

वो रो नहीं रहे, रहे हैं भर सिसकियां
सिसकियां जो दबकर रह गई है
धर्म के झुठे नारों में ।

नारे जो हल्ला कर रहे हैं
जिसमें नहीं कोई राग, विराग का ।

हो जाओ पूरे वैरागी पाओगे ये टुकड़े
किसी वस्तु के नहीं, बल्कि मानवता के हैं ।

यह उतना ही कट्टर सच है
जितना कोई कट्टर धार्मिक
इसलिए सच्चा कट्टर धार्मिक वही होगा
जो इस धुएँ का दुश्मन होगा ।