भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पुण्य फलीभूत हुआ / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव }} पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया<br> सो...) |
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{KKRachna | + | {{KKRachna |
− | | रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव | + | |रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव |
}} | }} | ||
− | |||
पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया<br> | पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया<br> | ||
सोने की जीभ मिली<br> | सोने की जीभ मिली<br> |
08:57, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण
पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया
सोने की जीभ मिली
स्वाद तो गया
छाया के आदी हैं गमलों के पौधे
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे
अपना जड़ भूल गई
द्वार की जया
हवा और पानी का अनुकूलन इतना
बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना
अपनी सुविधा से है
आँख में दया
मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर धीमा
सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा
मुझसे तो ऊँची है
डाल पर बया