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"मलिक मोहम्मद जायसी / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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जायसी [[भक्ति काल]] की [[निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा]] के कवि है। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे।  
जायसी भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि है। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे।
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==जन्म व प्रारंभिक जीवन==
  
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जायसी का जन्म सन १५०० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे। उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। यह भी इस बात को सूचित करता है कि वे जायस नगर के निवासी थे। इस संबंध में उनका स्वयं भी कहना है,  
जायसी का जन्म सन १५०० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे। उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। यह भी इस बात को सूचित करता है कि वे जायस नगर के निवासी थे। इस संबंध में उनका स्वयं भी कहना है, जायस नगर मोर अस्थानू।
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''जायस नगर मोर अस्थानू।  
  
नगरक नांव आदि उदयानू।
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नगरक नांव आदि उदयानू।  
  
तहां देवस दस पहुने आएऊं।
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तहां देवस दस पहुने आएऊं।
  
भा वैराग बहुत सुख पाएऊं।। (आखिरी कलाम 10)।
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भा वैराग बहुत सुख पाएऊं।।'' (आखिरी कलाम 10)।  
  
इससे यह पता चलता है कि उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था, वहां वे एक पहुने जैसे दस दिनों के लिए आए थे, अर्थात उन्होंने अपना नश्वर जीवन प्रारंभ किया था अथवा जन्म लिया था और फिर वैराग्य हो जाने पर वहां उन्हें बहुत सुख मिला था। जायस नाम का एक नगर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में आज भी वर्तमान है, जिसका एक पुराना नाम उद्याननगर 'उद्यानगर या उज्जालिक नगर' बतलाया जाता है तथा उसके कंचाना खुर्द नामक मुहल्ले में मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म-स्थान होना भी कहा जाता है। कुछ लोगों की धारणा कि जायसी की किसी उपलब्ध रचना के अंतर्गत उसकी निश्चित जन्म-तिथि अथवा जन्म-संवत का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता। एक स्थल पर वे कहते हैं,
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इससे यह पता चलता है कि उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था, वहां वे एक पहुने जैसे दस दिनों के लिए आए थे, अर्थात उन्होंने अपना नश्वर जीवन प्रारंभ किया था अथवा जन्म लिया था और फिर वैराग्य हो जाने पर वहां उन्हें बहुत सुख मिला था। जायस नाम का एक नगर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में आज भी वर्तमान है, जिसका एक पुराना नाम उद्याननगर 'उद्यानगर या उज्जालिक नगर' बतलाया जाता है तथा उसके कंचाना खुर्द नामक मुहल्ले में मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म-स्थान होना भी कहा जाता है। कुछ लोगों की धारणा कि जायसी की किसी उपलब्ध रचना के अंतर्गत उसकी निश्चित जन्म-तिथि अथवा जन्म-संवत का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता। एक स्थल पर वे कहते हैं,  
  
भा अवतार मोर नौ सदी।
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''भा अवतार मोर नौ सदी।  
  
तीस बरिख ऊपर कवि बदी (आखिरी कलाम 4)।
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तीस बरिख ऊपर कवि बदी'' (आखिरी कलाम 4)।  
  
जिसके आधार पर केवल इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि उनका जन्म संभवतः 800 हि एवं 900 हि. के मध्य, अर्थात सन 1397 ई और 1494 ई के बीच किसी समय हुआ होगा तथा तीस वर्ष की अवस्था पा चुकने पर उन्होंने काव्य-रचना का प्रारंभ किया होगा। पद्मावत का रचनाकाल उन्होंने 947 हि (सन नौ से सैंतालीस अहै- पद्मावत 24)। अर्थात 1540 ई बतलाया है। पद्मावत के अंतिम अंश(653) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे।
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जिसके आधार पर केवल इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि उनका जन्म संभवतः 800 हि एवं 900 हि. के मध्य, अर्थात सन 1397 ई और 1494 ई के बीच किसी समय हुआ होगा तथा तीस वर्ष की अवस्था पा चुकने पर उन्होंने काव्य-रचना का प्रारंभ किया होगा। पद्मावत का रचनाकाल उन्होंने 947 हि (''सन नौ से सैंतालीस अहै''- पद्मावत 24)। अर्थात 1540 ई बतलाया है। पद्मावत के अंतिम अंश(653) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे।
  
उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परंपरा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, सैयद अशरफ़, जो एक प्रिय संत थे मेरे लिए उज्ज्वल पंथ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया।
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उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है।
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जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परंपरा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, ''सैयद अशरफ़, जो एक प्रिय संत थे मेरे लिए उज्ज्वल पंथ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया।''
  
 
इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि अमेठी नरेश इनके संरक्षक थे।
 
इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि अमेठी नरेश इनके संरक्षक थे।
  
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==कृतियाँ==
  
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उनकी २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसमें पद्मावती की प्रेम कथा का रोचक वर्णन हुआ है। रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।
 
उनकी २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसमें पद्मावती की प्रेम कथा का रोचक वर्णन हुआ है। रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।
  
 
उनका देहांत १५५८ में हुआ।
 
उनका देहांत १५५८ में हुआ।

22:50, 12 अक्टूबर 2007 का अवतरण

जायसी भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि है। वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे।

जन्म व प्रारंभिक जीवन

जायसी का जन्म सन १५०० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे। उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। यह भी इस बात को सूचित करता है कि वे जायस नगर के निवासी थे। इस संबंध में उनका स्वयं भी कहना है, जायस नगर मोर अस्थानू।

नगरक नांव आदि उदयानू।

तहां देवस दस पहुने आएऊं।

भा वैराग बहुत सुख पाएऊं।। (आखिरी कलाम 10)।

इससे यह पता चलता है कि उस नगर का प्राचीन नाम उदयान था, वहां वे एक पहुने जैसे दस दिनों के लिए आए थे, अर्थात उन्होंने अपना नश्वर जीवन प्रारंभ किया था अथवा जन्म लिया था और फिर वैराग्य हो जाने पर वहां उन्हें बहुत सुख मिला था। जायस नाम का एक नगर उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में आज भी वर्तमान है, जिसका एक पुराना नाम उद्याननगर 'उद्यानगर या उज्जालिक नगर' बतलाया जाता है तथा उसके कंचाना खुर्द नामक मुहल्ले में मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म-स्थान होना भी कहा जाता है। कुछ लोगों की धारणा कि जायसी की किसी उपलब्ध रचना के अंतर्गत उसकी निश्चित जन्म-तिथि अथवा जन्म-संवत का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं पाया जाता। एक स्थल पर वे कहते हैं,

भा अवतार मोर नौ सदी।

तीस बरिख ऊपर कवि बदी (आखिरी कलाम 4)।

जिसके आधार पर केवल इतना ही अनुमान किया जा सकता है कि उनका जन्म संभवतः 800 हि एवं 900 हि. के मध्य, अर्थात सन 1397 ई और 1494 ई के बीच किसी समय हुआ होगा तथा तीस वर्ष की अवस्था पा चुकने पर उन्होंने काव्य-रचना का प्रारंभ किया होगा। पद्मावत का रचनाकाल उन्होंने 947 हि (सन नौ से सैंतालीस अहै- पद्मावत 24)। अर्थात 1540 ई बतलाया है। पद्मावत के अंतिम अंश(653) के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि उसे लिखते समय तक वे वृद्ध हो चुके थे।

उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और कहा जाता है कि वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। जायसी ने अपनी कुछ रचनाओं में अपनी गुरु-परंपरा का भी उल्लेख किया है। उनका कहना है, सैयद अशरफ़, जो एक प्रिय संत थे मेरे लिए उज्ज्वल पंथ के प्रदर्शक बने और उन्होंने प्रेम का दीपक जलाकर मेरा हृदय निर्मल कर दिया।

इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि अमेठी नरेश इनके संरक्षक थे।

कृतियाँ

उनकी २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसमें पद्मावती की प्रेम कथा का रोचक वर्णन हुआ है। रत्नसेन की पहली पत्नी नागमती के वियोग का अनूठा वर्णन है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।

उनका देहांत १५५८ में हुआ।