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− | + | ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय हो | |
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− | + | अग्नि-पर्व यह | |
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− | + | मन के-साँसों के यह धोवे | |
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− | + | हमें न व्यापें | |
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− | + | यह मौसम है | |
− | + | राग-द्वेष के परे नेह का | |
− | + | हाँ, विदेह होने का | |
− | + | है यह पर्व देह का | |
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− | + | साँस हमारी | |
− | + | इस असली सुख को पहचाने | |
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13:13, 27 मार्च 2013 का अवतरण
रँग गुलाल के
रचनाकार: कुमार रवीन्द्र
रँग गुलाल के
और फाग के बोल सुहाने
बुनें इन्हीं से संवत्सर के ताने-बाने
ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय हो
हर प्रकार से
दूर रहें दुख-दर्द-दलिद्दर
सदा द्वार से
कभी किसी को
कष्ट न दें जाने-अनजाने
अग्नि-पर्व यह
रंगपर्व यह सच्चा होवे
पाप-ताप सब
मन के-साँसों के यह धोवे
हमें न व्यापें
कभी स्वार्थ के कोई बहाने
यह मौसम है
राग-द्वेष के परे नेह का
हाँ, विदेह होने का
है यह पर्व देह का
साँस हमारी
इस असली सुख को पहचाने