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साँचा:KKPoemOfTheWeek

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रँग गुलाल के उनये उनये भादरे
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रचनाकार: [[कुमार रवींद्रनामवर सिंह]]
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रँग गुलाल केउनये उनये भादरेऔर फाग के बोल सुहानेबरखा की जल चादरेंबुनें इन्हीं फूल दीप से संवत्सर जलेकि झरती पुरवैया सी याद रेमन कुयें के ताने-बानेकोहरे सा रवि डूबे के बाद रे ।भादरे ।
ऋतु-प्रसंग यह मंगलमय होउठे बगूले घास मेंहर प्रकार सेचढ़ता रंग बतास मेंदूर रहें दुख-दर्द-दलिद्दरहरी हो रही धूपसदा द्वार से कभी किसी कोकष्ट न दें जानेनशे-अनजानेसी चढ़ती झुके अकास में अग्नि-पर्व यहरंगपर्व यह सच्चा होवेपाप-ताप सबमन तिरती हैं परछाइयाँ सीने के-साँसों के यह धोवे हमें न व्यापेंकभी स्वार्थ के कोई बहाने यह मौसम हैराग-द्वेष के परे नेह काहाँ, विदेह होने काहै यह पर्व देह का साँस हमारीभींगे चास में ।इस असली सुख को पहचाने घास में ।
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