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"मैं ख़ुद पे एक अजब वार करने वाला था / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर
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('ग़ज़ल धूप के पेड़ पर कैसे शबनम उगे,बस यही सोच कर सब प...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
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+ | बचा लिया मुझे मेरे ज़मीर ने वर्ना | ||
+ | मैं अपनी मौत का दीदार करने वाला था | ||
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+ | मेरे तबीब मुझे मौत क्यूँ नहीं आती | ||
+ | सवाल अजीब ही बीमार करनी वाला था | ||
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23:45, 31 मार्च 2013 का अवतरण
ग़ज़ल
मैं ख़ुद पे एक अजब वार करने वाला था उनाहगार हूँ इंकार करने वाला था
बचा लिया मुझे मेरे ज़मीर ने वर्ना मैं अपनी मौत का दीदार करने वाला था
अदीब हूँ मैं मगर भूल ही गया क्या हूँ मैं अपने लहजे को तलवार करने वाला था
मेरे तबीब मुझे मौत क्यूँ नहीं आती सवाल अजीब ही बीमार करनी वाला था
मैं बच-बचा के नज़र फेर कर चला आया मुझे वो दिल में गिरिफ़्तार करने वाला था