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"जो खुल कर अपनी भी ख़ामी कहते हैं / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

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15:18, 4 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

जो खुलकर अपनी भी ख़ामी कहते हैं
हम ख़ुद को उनका अनुगामी कहते हैं

चटकी छत, हिलती दीवारें, टूटा दर
आप हमें किस घर का स्वामी कहते हैं

तुम बोलो इस देश की संसद को संसद
हम तो उसे सांपों की बामी कहते हैं

सच्चाई का नाम नया है मजबूरी
सेवा को सब आज ग़ुलामी कहते हैं

हमसे ज़िन्दा है उल्फ़त का कारोबार
लोग हमें दिल का आसामी कहते हैं

अच्छा है क्या ख़ुद की खिल्ली उड़वाना
क्यों सबसे अपनी नाकामी कहते हैं

मत बोलो हल्के हैं शेर ‘अकेला’ के
जाने क्या क्या शायर नामी कहते हैं