भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घुटन से जूझता हूं गीत ख़ुशियों के लिखूंगा क्या / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |अंगारों पर ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:09, 5 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण
घुटन से जूझता हूँ गीत खुशियों के लिखूँगा क्या
हैं जब हालात रोने के तो ऐसे में हँसूँगा क्या
मेरे क़दमों की धूल उसने सजा ली अपने माथे पर
मैं उससे ही दग़ा करता हुआ अच्छा लगूँगा क्या
तुम्हारे आँसुओं ने सब हक़ीक़त खोल कर रख दी
बचा क्या कहने सुनने को कहूँगा क्या, सुनूँगा क्या
अगर मरना पड़े यारब तो दोनों साथ मर जाएँ
वो मेरे बिन जिएगी क्या, मैं उसके बिन जिऊँगा क्या
ये क्या कम है कई ग़ज़लें तुम्हारे नाम कर दी हैं
मैं इक शायर हूँ शेरों के अलावा और दूँगा क्या