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"वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा / रामकृष्ण दीक्षित 'विश्व'" के अवतरणों में अंतर

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तिलक बारूद को चन्दन का लगाओ जरा  
 
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वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा ?
 
वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा ?

14:28, 8 अप्रैल 2013 का अवतरण

साथियों आओ जरा झूम के कुछ गाओ जरा
गीत मर जाएगा तो जिन्दगी का क्या होगा ?
खनक तलवार की पायल से भी मिलाओ जरा
वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा ?

कह दो जंग खोरो से इंसानों से नफरत न करो
उनसे पूछो की उनके खुनी समंदर है कहा
सारे संसार को सूली पे चढाने वालो
ये बता दो की वो नादिर वो सिकंदर है कहा ?

आग नफरत की जाम समझ पी जाओ जरा
वर्ना इस मुहब्बत की चाँदनी का क्या होगा
खनक तलवार की पायल से भी मिलाओ जरा
वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा ?

अब न कभी धरती पर जंग की लपटे फैले
जंगी इतिहास को चलो धरती में गाड़ चलो
नई दुनिया में नई फसलें उगाने के लिए
फूल की चोट से संगीन का दिल फाड़ चलो

तिलक बारूद को चन्दन का लगाओ जरा
वर्ना इंसानियत की आरती का क्या होगा ?
खनक तलवार की पायल से भी मिलाओ जरा
वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा ?

बढ़ो आंधी की तरह बुद्ध या गाँधी की तरह
गंगा जमुना की रवानी लिए गहराई लिए
सरहदे पार करो शांति का ऐलान करो
अपने होठो पर चहकती शहनाई हुई लिए

कालिया दहन के संग रास भी रचाहो जरा
वरन गोकुल में बजी बांसुरी का क्या होगा ?
खनक तलवार की पायल से भी मिलाओ जरा
वर्ना इस देश की जवानी का क्या होगा ?