भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

99 bytes removed, 06:21, 10 अप्रैल 2013
<div style="font-size:120%; color:#a00000">
स्त्री वेद पढ़ती हैकिसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोल
</div>
<div>
रचनाकार: [[दिनकर कुमारराहत इन्दौरी]]
</div>
<poem>
स्त्री वेद पढ़ती हैकिसका नारा, कैसा कौल, अल्लाह बोलउसे मंच से उतार देता अभी बदलता हैधर्म का ठेकेदारकहता है—जाएगी वह नरक के द्वारमाहौल, अल्लाह बोल
यह कैसा वेद हैकैसे साथी, कैसे यार, सब मक्कारजिसे पढ़ नहीं सकती स्त्रीजिस वेद को रचा थास्त्रियों ने भीजो रचती हैमानव समुदाय कोउसके लिए कैसी वर्जना हैसबकी नीयत डाँवाडोल, अल्लाह बोल
या साज़िश हैजैसा गाहक, वैसा माल, देकर तालयुग-युग से धर्म की दुकानचलाने वालों की साज़िश हैबनी रहे स्त्री बांदीजाहिल और उपेक्षिताडूबी रहे अंधविश्वासोंव्रत-उपवासों कागज़ मेंउतारती रहे पति परमेश्वरकी आरती औरख़ून चूसते रहे सब उसकाअंगारे तोल, अल्लाह बोल
अरुंधतियों को नहींहर पत्थर के सामने रख दे आइनारोक सकेंगे निश्चलानंदनोच ले हर चेहरे का खोल, अल्लाह बोलवह वेद भी पढ़ेगीऔर रचेगीदलालों से नाता तोड़, सबको छोड़नया वेद । भेज कमीनों पर लाहौल, अल्लाह बोल इन्सानों से इन्सानों तक एक सदाक्या तातारी, क्या मंगोल, अल्लाह बोल शाख-ए-सहर पे महके फूल अज़ानों केफेंक रजाई, आँखें खोल, अल्लाह बोल
</poem>
</div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,720
edits