भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रोको मत टोको मत / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> रोक...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
 
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं  
 
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं  
  
बच्चों के एक विज्ञापन के लिए लिखा जिंगल.
+
बच्चों के एक विज्ञापन के लिए लिखा जिंगल(2013).
 
</poem>
 
</poem>

22:29, 12 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

 
रोको मत टोको मत
सोचने दो इन्हें सोचने दो
रोको मत टोको मत
होए टोको मत इन्हें सोचने दो

मुश्किलों के हल खोजने दो
रोको मत टोको मत
निकलने तो दो आसमां से जुड़ेंगे
अरे अंडे के अन्दर ही कैसे उड़ेंगे यार

निकालने दो पाँव जुराबें बहुत हैं
किताबों के बाहर किताबें बहुत हैं

बच्चों के एक विज्ञापन के लिए लिखा जिंगल(2013).