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"धुंधुवाता अलाव / नामवर सिंह" के अवतरणों में अंतर

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धुंधुवाता अलाव, चौतरफ़ा मोढ़ा मचिया
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धुन्धुवाता अलाव, चौतरफ़ा मोढ़ा मचिया
 
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पड़े गुड़गुड़ाते हुक्का कुछ खींच मिरजई
 
पड़े गुड़गुड़ाते हुक्का कुछ खींच मिरजई
 
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बाबा बोले लख अकास : 'अब मटर भी गई'
बाबा बोले लख अकास :'अब मटर भी गई'
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देखा सिर पर नीम फाँक में से कचपकिया
 
देखा सिर पर नीम फाँक में से कचपकिया
  
डबडबा गई सी,कँपती पत्तियाँ टहनियाँ
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डबडबा गई-सी, कँपती पत्तियाँ टहनियाँ
 
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लपटों की आभा में तरु की उभरी छाया ।
लपटों की आभा में तरु की उभरी छाया।
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पकते गुड़ की गरम गंध ले सहसा आया
 
पकते गुड़ की गरम गंध ले सहसा आया
 
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मीठा झोंका। 'आह, हो गई कैसी दुनिया !
मीठा झोंका।'आह, हो गई कैसी दुनिया!
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सिकमी पर दस गुना।' सुना फिर था वही गला
 
सिकमी पर दस गुना।' सुना फिर था वही गला
 
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सबने गुपचुप गुना, किसी ने कुछ नहीं कहा ।
सबने गुपचुप गुना, किसी ने कुछ नहीं कहा।
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चूँ-चूँ बस कोल्हू की; लोहे से नहीं सहा
 
चूँ-चूँ बस कोल्हू की; लोहे से नहीं सहा
 
 
गया। चिलम फिर चढ़ी, ख़ैर, यह पूस तो चला...'
 
गया। चिलम फिर चढ़ी, ख़ैर, यह पूस तो चला...'
  
 
पूरा वाक्य न हुआ कि आया खरतर झोंका
 
पूरा वाक्य न हुआ कि आया खरतर झोंका
 
 
धधक उठा कौड़ा, पुआल में कुत्ता भोंका।
 
धधक उठा कौड़ा, पुआल में कुत्ता भोंका।
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14:00, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

धुन्धुवाता अलाव, चौतरफ़ा मोढ़ा मचिया
पड़े गुड़गुड़ाते हुक्का कुछ खींच मिरजई
बाबा बोले लख अकास : 'अब मटर भी गई'
देखा सिर पर नीम फाँक में से कचपकिया

डबडबा गई-सी, कँपती पत्तियाँ टहनियाँ
लपटों की आभा में तरु की उभरी छाया ।
पकते गुड़ की गरम गंध ले सहसा आया
मीठा झोंका। 'आह, हो गई कैसी दुनिया !

सिकमी पर दस गुना।' सुना फिर था वही गला
सबने गुपचुप गुना, किसी ने कुछ नहीं कहा ।
चूँ-चूँ बस कोल्हू की; लोहे से नहीं सहा
गया। चिलम फिर चढ़ी, ख़ैर, यह पूस तो चला...'

पूरा वाक्य न हुआ कि आया खरतर झोंका
धधक उठा कौड़ा, पुआल में कुत्ता भोंका।