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"इस लिए रहता नहीं कोई नया डर मुझमें / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर
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इस लिए रहता नहीं कोई नया डर मुझमें | इस लिए रहता नहीं कोई नया डर मुझमें | ||
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आईना झाँकता रहता है बराबर मुझमें | आईना झाँकता रहता है बराबर मुझमें | ||
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मैं तो सहरा हूँ मगर मुझको है इतना मा’लूम | मैं तो सहरा हूँ मगर मुझको है इतना मा’लूम | ||
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डूब जाता है क़रीब आके समंदर मुझमें | डूब जाता है क़रीब आके समंदर मुझमें | ||
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मुझको पत्थर ही में मूरत का गुमाँ होता है | मुझको पत्थर ही में मूरत का गुमाँ होता है | ||
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बस गया है कोई एहसास का पैकर मुझमें | बस गया है कोई एहसास का पैकर मुझमें | ||
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मेरी तक़दीर में ऐ दोस्त तेरा साथ नहीं | मेरी तक़दीर में ऐ दोस्त तेरा साथ नहीं | ||
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ढूँढना छोड़ दे तू अपना मुक़द्दर मुझमें | ढूँढना छोड़ दे तू अपना मुक़द्दर मुझमें | ||
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मैं तो तस्वीर हूँ आँसू की मुझे क्या मा’लूम | मैं तो तस्वीर हूँ आँसू की मुझे क्या मा’लूम | ||
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क़ैद रहते हैं कई दर्द के मंज़र मुझमें | क़ैद रहते हैं कई दर्द के मंज़र मुझमें | ||
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मेरे साए पे करो वार मगर ध्यान रहे | मेरे साए पे करो वार मगर ध्यान रहे | ||
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कोई होता ही नहीं जिस्म से बाहर मुझमें | कोई होता ही नहीं जिस्म से बाहर मुझमें |
18:19, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण
ग़ज़ल
इस लिए रहता नहीं कोई नया डर मुझमें
आईना झाँकता रहता है बराबर मुझमें
मैं तो सहरा हूँ मगर मुझको है इतना मा’लूम
डूब जाता है क़रीब आके समंदर मुझमें
मुझको पत्थर ही में मूरत का गुमाँ होता है
बस गया है कोई एहसास का पैकर मुझमें
मेरी तक़दीर में ऐ दोस्त तेरा साथ नहीं
ढूँढना छोड़ दे तू अपना मुक़द्दर मुझमें
मैं तो तस्वीर हूँ आँसू की मुझे क्या मा’लूम
क़ैद रहते हैं कई दर्द के मंज़र मुझमें
मेरे साए पे करो वार मगर ध्यान रहे
कोई होता ही नहीं जिस्म से बाहर मुझमें