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"मैं क्यों पूछूँ यह विरह-निशा, कितनी बीती क्या शेष रही? / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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12:48, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण
== मैं क्यों पूछूँ यह विरह-निशा, कितनी बीती क्या शेष रही? ==
उर का दीपक चिर, स्नेह अतल,
सुधि-लौ शत झंझा में निश्चल,
सुख से भीनी दुख से गीली
वर्ती सी साँस अशेष रही!
निश्वासहीन-सा जग सोता,
श्रृंगार-शून्य अम्बर रोता,
तब मेरी उजली मूक व्यथा,
किरणों के खोले केश रही!
विद्युत घन में बुझने आती,
ज्वाला सागर में धुल जाती,
मैं अपने आँसू में बुझ धुल,
देती आलोक विशेष रही!
जो ज्वारों में पल कर, न बहें,
अंगार चुगें जलजात रहें,
मैं गत-आगत के चिर संगी
सपनों का कर उन्मेष रही!
उनके स्वर से अन्तर भरने,
उस गति को निज गाथा
उनके पद चिह्न बसाने को,
मैं रचती नित परदेश रही!
क्षण गूँजे औ’ यह कण गावें,
जब वे इस पथ उन्मन आवें,
उनके हित मिट-मिट कर लिखती
मैं एक अमिट सन्देश रही!