भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: == निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते! == पंथ को निर्वाण माना, शूल को वरदान जा...)
(कोई अंतर नहीं)

12:52, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण

निमिष से मेरे विरह के कल्प बीते!

पंथ को निर्वाण माना,

शूल को वरदान जाना,

जानते यह चरण कण कण

छू मिलन-उत्सव मनाना!

प्यास ही से भर लिये अभिसार रीते!

ओस से ढुल कल्प बीते!


नीरदों में मन्द्र गति-स्वन,

वात में उर का प्रकम्पन,

विद्यु में पाया तुम्हारा

अश्रु से उजला निमन्त्रण!

छाँह तेरी जान तम को श्वास पीते!

फूल से खिल कल्प बीते!



माँग नींद अनन्त का वर,

कर तुम्हारे स्वप्न को चिर,

पुलक औ’ सुधि के पुलिन से

बाँध दुख का अगम सागर,

प्राण तुमसे हार कर प्रति बार जीते!

दीप से घुल कल्प बीते!