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"कहने को इंसान बहुत हैं / पवन कुमार" के अवतरणों में अंतर

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कहने को इंसान बहुत हैं
 
कहने को इंसान बहुत हैं

06:20, 26 अप्रैल 2013 का अवतरण

कहने को इंसान बहुत हैं
पर इनमें बेजान बहुत हैं

मैं इक सादा वरक’ अकेला
बंधने को जुज’दान बहुत है

कच्चे रंग सँभालें ख़ुद को
बारिश के इम्कान बहुत हैं

दरियादिल है शायद मालिक
इस घर में मेहमान बहुत हैं

काश इनमें कुछ फूल भी होते
कमरे में गुलदान बहुत हैं

काश कि कोई ज’ह्न भी चमके
जिस्म यहाँ जीशान बहुत हैं

इश्क’ ही नेमत इश्क’ खुदाई
पर इसमें नुक’सान बहुत हैं

वरक = पृष्ठ, जु’जदान = पुस्तक बांधने का कपड़ा, इम्कान = सम्भावना, जीशान = चमक