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"क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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== क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे! ==
 
== क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे! ==
  
  
रंगों के बादल निरतरंग, लघु हृदय तुम्हारा अमर छन्द,
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रंगों के बादल निरतरंग,  
  
रूपों के शत-शत वीचि-भंग, स्पन्दन में स्वर-लहरी अमन्द,
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रूपों के शत-शत वीचि-भंग,  
  
किरणों की रेखाओं में भर, हर स्नेह का चिर निबन्ध,
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किरणों की रेखाओं में भर,  
  
अपने अनन्त मानस पट पर, हर पुलक तुम्हारा भाव-बन्ध,
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अपने अनन्त मानस पट पर,  
  
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तुम देते रहते हो प्रतिपल,
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जाने कितने आकार मुझे!
  
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हर छबि में कर साकार मुझे!
  
तुम देते रहते हो प्रतिपल, निज साँस तुम्हारी रचना का
 
  
जाने कितने आकार मुझे! लगती अखंड विस्तार मुझे!
 
  
हर छबि में कर साकार मुझे! हर पल रस का संसार मुझे!
 
  
  
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मेरी मृदु पलकें मूँद-मूँद,
  
मेरी मृदु पलकें मूँद-मूँद, मैं चली कथा का क्षण लेकर,
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छलका आँसू की बूँद-बूँद,  
  
छलका आँसू की बूँद-बूँद, मैं मिली व्यथा का कण देकर,
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लघुत्तम कलियों में नाप प्राण,  
  
लघुत्तम कलियों में नाप प्राण, इसको नभ ने अवकाश दिया,
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सौरभ पर मेरे तोल गान,  
  
सौरभ पर मेरे तोल गान, भू ने इसको इतिहास किया,
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बिन माँगे तुमने दे डाला,  
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करुणा का पारावार मुझे!
  
बिन माँगे तुमने दे डाला, अब अणु-अणु सौंपे देता है
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चिर सुख-दुख के दो पार मुझे!
  
करुणा का पारावार मुझे! युग-युग का संचित प्यार मुझे!
 
  
चिर सुख-दुख के दो पार मुझे! कह-कह पाहुन सुकुमार मुझे!
 
  
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लघु हृदय तुम्हारा अमर छन्द,
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स्पन्दन में स्वर-लहरी अमन्द,
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हर स्नेह का चिर निबन्ध,
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हर पुलक तुम्हारा भाव-बन्ध,
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निज साँस तुम्हारी रचना का
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लगती अखंड विस्तार मुझे!
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हर पल रस का संसार मुझे!
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मैं चली कथा का क्षण लेकर,
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मैं मिली व्यथा का कण देकर,
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इसको नभ ने अवकाश दिया,
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भू ने इसको इतिहास किया,
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अब अणु-अणु सौंपे देता है, युग-युग का संचित प्यार मुझे!
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कह-कह पाहुन सुकुमार मुझे!
  
  
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मुखरित, चरणों के आस-पास,
 
मुखरित, चरणों के आस-पास,
 
 
  
 
हर पग पर स्वर्ग बसा देती
 
हर पग पर स्वर्ग बसा देती
 
 
धरती की नव मनुहार मुझे!
 
धरती की नव मनुहार मुझे!
  

16:51, 15 अक्टूबर 2007 का अवतरण

क्यों अश्रु न हों श्रृंगार मुझे!

रंगों के बादल निरतरंग,

रूपों के शत-शत वीचि-भंग,

किरणों की रेखाओं में भर,

अपने अनन्त मानस पट पर,

तुम देते रहते हो प्रतिपल, जाने कितने आकार मुझे!

हर छबि में कर साकार मुझे!



मेरी मृदु पलकें मूँद-मूँद,

छलका आँसू की बूँद-बूँद,

लघुत्तम कलियों में नाप प्राण,

सौरभ पर मेरे तोल गान,

बिन माँगे तुमने दे डाला, 

करुणा का पारावार मुझे!

चिर सुख-दुख के दो पार मुझे!



लघु हृदय तुम्हारा अमर छन्द,

स्पन्दन में स्वर-लहरी अमन्द,

हर स्नेह का चिर निबन्ध,

हर पुलक तुम्हारा भाव-बन्ध,

निज साँस तुम्हारी रचना का लगती अखंड विस्तार मुझे!

हर पल रस का संसार मुझे!


मैं चली कथा का क्षण लेकर,

मैं मिली व्यथा का कण देकर,

इसको नभ ने अवकाश दिया,

भू ने इसको इतिहास किया,

अब अणु-अणु सौंपे देता है, युग-युग का संचित प्यार मुझे!

कह-कह पाहुन सुकुमार मुझे!


रोके मुझको जीवन अधीर,

दृग-ओट न करती सजग पीर,

नुपुर से शत-शत मिलन-पाश

मुखरित, चरणों के आस-पास,

हर पग पर स्वर्ग बसा देती धरती की नव मनुहार मुझे!

लय में अविराम पुकार मुझे!

क्यों अश्रु न हो श्रृंगार मुझे!