"फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियाँ / नीरज गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> मेरे बचप...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:38, 1 मई 2013 के समय का अवतरण
मेरे बचपन का वो साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में
फूल कर कुप्पा हुआ करती थीं जिस पर रोटियां
माँ की प्यारी वो अंगीठी, है अभी तक गाँव में
ज़हर सी कडवी बहुत हैं इस नगर में बोलियाँ
हर जबां पर गुड़ की भेली, है अभी तक गाँव में
शहर में देखो जवानी में बुढ़ापा आ गया
पर बुढ़ापे में जवानी, है अभी तक गांव में
कोशिशें उसको उठाने की सभी ज़ाया हुईं
इक अजब सी नातवानी, है अभी तक गाँव में
नातवानी= अक्षमता, निर्बलता, असामर्थ्य
सारे त्योंहारों पे मिल कर मौज मस्ती नाचना
रोज पनघट पे ठिठोली, है अभी तक गांव में
पेट भरता था जिसे खा कर मगर ये मन नही
ढूध वाली वो जलेबी, है अभी तक गांव में
जिस्म की पुरपेच गलियों में कभी खोया नहीं
प्यार तो "नीरज" रूहानी है अभी तक गाँव में