भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> त...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:36, 8 मई 2013 के समय का अवतरण
तेरी इन आंखों के इशारे पागल हैं
इन झीलों की मौजें, धारे पागल है
चाँद तो कुहनी मार के अक्सर गुज़रा है
अपनी ही क़िस्मत के सितारे पागल हैं
कमरों से तितली का गुज़र कब होता है
गमलों के ये फूल बेचारे पागल हैं
अक़्लो खि़रद का काम नहीं है साहिल पर
नज़रें घायल और नज़ारे पागल हैं
कोई न कोई पागलपन है सबपे सवार
जितने हैं फ़नकार वो सारे पागल हैं
शेरो सुखन की बात इन्हीं के बस की है
‘अना’ वना जो दर्द के मारे पागल ह