भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम अब भी चुप हो / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:11, 16 मई 2013 के समय का अवतरण
इत्र को चख कर
मीठा किसने बताया था
तुमने.... या तुमने?
क्या तुमने नहीं कहा था?
तो क्या तुम चुप थे वहां?
तुम चुप क्यों थे वहां....
और अब यहां....
तुम्हारी भूमिका क्या है?
क्या तुम सुन रहे हो?
कितने लोग कहते हैं-
कविता कुछ नहीं करती।
कुछ नहीं करती कविता!
क्या कुछ नहीं करती कविता?
कमाल है
तुम अब भी चुप हो!