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गुड़िया-2 / नीरज दइया

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया}}{{KKCatKavita‎}}<poem>जिंदा रहती हैमेरा चूमना और तुम्हाराखुद को यूं हवाले लड़की में गुड़ियाकर देना।
जिंदा रहती हैमेरा गले लगानाऔरत में लड़कीऔर तुम्हाराखुद को बेसहाराछोड़ देना।
अंत प्यारा में वह गुड़ियातुमक्यों बन जाती है बुढ़िया हो निर्जीव! </poem>
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