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|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जिस गुड़िया से थातुम आई हो प्यार बचपन मेंकिसी अन्य लोक सेवह कितना निष्पाप थाबन कर सुंदर-सी गुडिय़ा
अब पाप मेंबचपन जा चुकादाग गिन भी नहीं पाता कहां छुपा सकता हूं तुम्हें -सिवाय मन के!
</poem>