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"कहने और न कहने के बीच / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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06:34, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

चाहने भर से क्या होता है
कहना चाहो तो भी
कहा नहीं जा सकता।

कहने और न कहने के बीच
एक खूबसूरत जगह है दोस्तों
उसी जगह पर रूक गया हूं मैं
करता हूं आपसे अनुनय
विदा कहें मुझे!