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"भूतकाल का प्रेम / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
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किसी अतीत में
कहीं पीछे छोड़ आए थे-
हम हमारा प्रेम!
कुछ कहना, कुछ सुनना
पूछना और कुछ बतलाना
इन औपचारिकताओं में
पता नहीं चला किस स्मृति के सहारे
बना कर अपना मार्ग
आ पहुंचा है प्रेम।
भूतकाल का प्रेम
लग रहा है- भूत
शायद वह चला जाए!
जाने से पहले
जान लो उसे
पहचानो
बस एक बार...