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"खोने और पाने का रोना / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
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तुम कुछ नहीं कहती,
कहती है तुम्हारी आंखें!
आज तुम बहुत रोयी हो
जितना कि प्रेम को खो कर
रोयी थी तुम,
उतना ही रोयी हो तुम आज
प्रेम को पाकर !
देखो अब भी
उलझी हैं आंखें तुम्हारी
सोचती हुई-
सच क्या है-
खोना
या पाना!