भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"लड़की / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

06:47, 16 मई 2013 के समय का अवतरण

लड़की हंसी
जो अभी-अभी निकल आई थी
औरत की देह से।

औरत हैरान
कि वह लड़की बनकर
वर्तमान में कैसे निकल आई?

दुखों के पहाड़ से दबी
औरत को देखकर
कोई नहीं कह सकता
यह वही लड़की है।

एक बार मर चुकी लड़की
अब जीना चाहती है
कि जिंदा रहे लड़की
वर्ना औरत मर जाएगी।