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"नागमती-सुवा-संवाद-खंड / मलिक मोहम्मद जायसी" के अवतरणों में अंतर

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दिन दस पाँच तहाँ जो भए । राजा कतहुँ अहेरै गए ॥
 
नागमती रूपवंती रानी । सब रनिवास पाट-परधानी ॥
 
कै सिंगार कर दरपन लीन्हा । दरसन देखि गरब जिउ कीन्हा ॥
 
बोलहु सुआ पियारे-नाहाँ । मोरे रूप कोइ जग माहाँ ?॥
 
हँसत सुआ पहँ आइ सो नारी । दीन्ह कसौटी ओपनिवारी ॥
 
सुआ बानि कसि कहु कस सोना । सिंघलदीप तोर कस लोना ?॥
 
कौन रुप तोरी रुपमनी । दहुँ हौं लोनि, कि वै पदमिनी ?॥
 
  
जो न कहसि सत सुअटा तेहि राजा कै आन
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दिन दस पाँच तहाँ जो भए । राजा कतहुँ अहेरै गए ॥<br>
है कोई एहि जगत महँ मोरे रूप समान ॥1॥
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नागमती रूपवंती रानी । सब रनिवास पाट-परधानी ॥<br>
 +
कै सिंगार कर दरपन लीन्हा दरसन देखि गरब जिउ कीन्हा ॥<br>
 +
बोलहु सुआ पियारे-नाहाँ । मोरे रूप कोइ जग माहाँ ?॥<br>
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हँसत सुआ पहँ आइ सो नारी । दीन्ह कसौटी ओपनिवारी ॥<br>
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सुआ बानि कसि कहु कस सोना । सिंघलदीप तोर कस लोना ?॥<br>
 +
कौन रुप तोरी रुपमनी । दहुँ हौं लोनि, कि वै पदमिनी ?॥<br><br>
  
सुमिरि रूप पदमावति केरा । हँसा सुआ, रानी मुख हेरा ॥
+
जो कहसि सत सुअटा तेहि राजा कै आन <br>
जेहि सरवर महँ हंस आवा । बगुला तेहि सरस हंस कहावा ॥
+
है कोई एहि जगत महँ मोरे रूप समान ॥1॥<br><br>
दई कीन्ह अस जगत अनूपा । एक एक तें आगरि रूपा ॥
+
कै मन गरब न छाजा काहू चाँद घटा औ लागेउ राहू ॥
+
लोनि बिलोनि तहाँ को कहै । लोनी सोई कंत जेहि चहै ॥
+
का पूछहु सिंघल कै नारी । दिनहिं न पूजै निसि अँधियारी ॥
+
पुहुप सुवास सो तिन्ह कै काया । जहाँ माथ का बरनौं पाया ?॥
+
  
गढी सो सोने सोंधे, भरी सो रूपै भाग
+
सुमिरि रूप पदमावति केरा । हँसा सुआ, रानी मुख हेरा ॥<br>
सुनत रूखि भइ रानी, हिये लोन अस लाग ॥2॥
+
जेहि सरवर महँ हंस न आवा बगुला तेहि सरस हंस कहावा ॥<br>
 +
दई कीन्ह अस जगत अनूपा । एक एक तें आगरि रूपा ॥<br>
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कै मन गरब न छाजा काहू । चाँद घटा औ लागेउ राहू ॥<br>
 +
लोनि बिलोनि तहाँ को कहै । लोनी सोई कंत जेहि चहै ॥<br>
 +
का पूछहु सिंघल कै नारी । दिनहिं न पूजै निसि अँधियारी ॥<br>
 +
पुहुप सुवास सो तिन्ह कै काया । जहाँ माथ का बरनौं पाया ?॥<br><br>
  
जौ यह सुआ मँदिर महँ अहई । कबहुँ बात राजा सौं कहई ॥
+
गढी सो सोने सोंधे, भरी सो रूपै भाग <br>
सुनि राजा पुनि होइ वियोगी । छाँडे राज, चलै होइ जोगी ॥
+
सुनत रूखि भइ रानी, हिये लोन अस लाग ॥2॥<br><br>
बिख राखिय नहिं, होइ अँकूरू सबद न देइ भोर तमचूरू ॥
+
धाय दामिनी बेगि हँकारी । ओहि सौंपा हीये रिस भारी ॥
+
देखु सुआ यह है मँदचाला । भएउ न ताकर जाकर पाला ॥
+
मुख कह आन, पेट बस आना । तेहि औगुन दस हाट बिकाना ॥
+
पंखि न राखिय होइ कुभाखी । लेइ तहँ मारू जहाँ नहिं साखी ॥
+
  
जेहि दिन कहँ मैं डरति हौं, रैनि छपावौं सूर
+
जौ यह सुआ मँदिर महँ अहई । कबहुँ बात राजा सौं कहई ॥<br>
लै चह-दीन्ह कवँल कहँ, मोकहँ होइ मयूर ॥3॥
+
सुनि राजा पुनि होइ वियोगी । छाँडे राज, चलै होइ जोगी ॥<br>
 +
बिख राखिय नहिं, होइ अँकूरू सबद न देइ भोर तमचूरू ॥<br>
 +
धाय दामिनी बेगि हँकारी । ओहि सौंपा हीये रिस भारी ॥<br>
 +
देखु सुआ यह है मँदचाला । भएउ न ताकर जाकर पाला ॥<br>
 +
मुख कह आन, पेट बस आना । तेहि औगुन दस हाट बिकाना ॥<br>
 +
पंखि न राखिय होइ कुभाखी । लेइ तहँ मारू जहाँ नहिं साखी ॥<br><br>
  
धाय सुआ लेइ मारै गई । समुझि गियान हिये मति भई ॥
+
जेहि दिन कहँ मैं डरति हौं, रैनि छपावौं सूर <br>
सुआ सो राजा कर बिसरामी । मारि न जाइ चहै जेहि स्वामी ॥
+
लै चह-दीन्ह कवँल कहँ, मोकहँ होइ मयूर ॥3॥<br><br>
यह पंडित खंडित बैरागू दोष ताहि जेहि सूझ न आगू ॥
+
जो तिरिया के काज न जाना । परै धोख, पाछे पछिताना ॥
+
नागमति नागिनि-बुधि ताऊ । सुआ मयूर होइ नहिं काऊ ॥
+
जौ न कंत के आयसु माहीं । कौन भरोस नारि कै वाही ?॥
+
मकु यह खोज निसि आए । तुरय-रोग हरि-माथे जाए ॥
+
  
दुइ सो छपाए ना छपै एक हत्या एक पाप ।  
+
धाय सुआ लेइ मारै गई । समुझि गियान हिये मति भई ॥<br>
अंतहि करहिं बिनास लेइ, सेइ साखी देइँ आप ॥4॥
+
सुआ सो राजा कर बिसरामी मारि न जाइ चहै जेहि स्वामी ॥<br>
 +
यह पंडित खंडित बैरागू । दोष ताहि जेहि सूझ न आगू ॥<br>
 +
जो तिरिया के काज न जाना । परै धोख, पाछे पछिताना ॥<br>
 +
नागमति नागिनि-बुधि ताऊ । सुआ मयूर होइ नहिं काऊ ॥<br>
 +
जौ न कंत के आयसु माहीं । कौन भरोस नारि कै वाही ?॥<br>
 +
मकु यह खोज निसि आए । तुरय-रोग हरि-माथे जाए ॥<br><br>
  
राखा सुआ, धाय मति साजा भएउ कौज निसि आएउ राजा ॥
+
दुइ सो छपाए ना छपै एक हत्या एक पाप <br>
रानी उतर मान सौं दीन्हा । पंडित सुआ मजारी लीन्हा ॥
+
अंतहि करहिं बिनास लेइ, सेइ साखी देइँ आप ॥4॥<br><br>
मैं पूछा सिंघल पदमिनी । उतर दीन्ह तुम्ह, को नागिनी ?॥
+
वह जस दिन, तुम निसि अँधियारी । कहाँ बसंत; करील क बारी ॥
+
का तोर पुरुष रैनि कर राऊ । उलू न जान दिवस कर भाऊ ॥
+
का वह पंखि कूट मुँह कूटे । अस बड बोल जीभ मुख छोटे ॥
+
जहर चुवै जो जो कह बाता । अस हतियार लिए मुख राता ॥
+
+
माथे नहिं बैसारिय जौ सुठि सुआ सलोन ।
+
कान टुटैं जेहि पहिरे का लेइ करब सो सोन ?॥5॥
+
  
राजै सुनि वियोग तस माना जैसे हिय विक्रम पछिताना
+
राखा सुआ, धाय मति साजा भएउ कौज निसि आएउ राजा <br>
बह हीरामन पंडित सूआ । जो बोलै मुख अमृत चूआ
+
रानी उतर मान सौं दीन्हा । पंडित सुआ मजारी लीन्हा <br>
पंडित तुम्ह खंडित निरदोखा । पंडित हुतें परै नहिं धोखा
+
मैं पूछा सिंघल पदमिनी । उतर दीन्ह तुम्ह, को नागिनी ?<br>
पंडित केरि जीभ मुख सूधी पंडित बात न कहै बिरूधी
+
वह जस दिन, तुम निसि अँधियारी कहाँ बसंत; करील क बारी <br>
पंडित सुमति देइ पथ लावा जो कुपंथि तेहि पँडित भावा
+
का तोर पुरुष रैनि कर राऊ उलू जान दिवस कर भाऊ <br>
पंडित राता बदन सरेखा जो हत्यार रुहिर सो देखा
+
का वह पंखि कूट मुँह कूटे अस बड बोल जीभ मुख छोटे <br>
की परान घट आनहु मती। की चलि होहु सुआ सँग सती
+
जहर चुवै जो जो कह बाता । अस हतियार लिए मुख राता <br><br>
  
जिनि जानहु कै औगुन मँदिर सोइ सुखराज
+
माथे नहिं बैसारिय जौ सुठि सुआ सलोन <br>
आयसु मेटें कंत कर काकर भा न अकाज ?॥6॥
+
कान टुटैं जेहि पहिरे का लेइ करब सो सोन ?॥5॥<br><br>
  
चाँद जैस धनि उजियारि अही भा पिउ-रोस, गहन अस गही
+
राजै सुनि वियोग तस माना जैसे हिय विक्रम पछिताना <br>
परम सोहाग निबाहि न पारी । भा दोहाग सेवा जब हारी ॥
+
बह हीरामन पंडित सूआ । जो बोलै मुख अमृत चूआ <br>
एतनिक दोस बिरचि पिउ रूठा । जो पिउ आपन कहै सो झूठा
+
पंडित तुम्ह खंडित निरदोखा पंडित हुतें परै नहिं धोखा <br>
ऐसे गरब न भूलै कोई जेहि डर बहुत पियारी सोई
+
पंडित केरि जीभ मुख सूधी पंडित बात न कहै बिरूधी <br>
रानी आइ धाय के पासा सुआ मुआ सेवँर कै आसा
+
पंडित सुमति देइ पथ लावा जो कुपंथि तेहि पँडित भावा <br>
परा प्रीति-कंचन महँ सीसा बिहरि मिलै, स्याम पै दीसा
+
पंडित राता बदन सरेखा जो हत्यार रुहिर सो देखा ॥<br>
कहाँ सोनार पास जेहि जाऊँ देइ सोहाग करै एक ठाऊँ
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की परान घट आनहु मती। की चलि होहु सुआ सँग सती <br><br>
  
मैं पिउ -प्रीति भरोसे गरब कीन्ह जिउ माँह ।  
+
जिनि जानहु कै औगुन मँदिर सोइ सुखराज <br>
तेहि रिस हौं परहेली, रूसेउ नागर नाहँ ॥7॥
+
आयसु मेटें कंत कर काकर भा न अकाज ?॥6॥<br><br>
  
उतर धाय तब दीन्ह रिसाई रिस आपुहि, बुधि औरहि खाई
+
चाँद जैस धनि उजियारि अही भा पिउ-रोस, गहन अस गही <br>
मैं जो कहा रिस जिनि करु बाला । को गयउ एहि रिस कर घाला ?
+
परम सोहाग निबाहि पारी । भा दोहाग सेवा जब हारी <br>
तू रिसभरी न देखेसि आगू रिस महँ काकर भयउ सोहागू ?
+
एतनिक दोस बिरचि पिउ रूठा जो पिउ आपन कहै सो झूठा <br>
जेहि रिस तेहि रस जोगे जाई बिनु रस हरदि होइ पियराई
+
ऐसे गरब भूलै कोई जेहि डर बहुत पियारी सोई <br>
बिरसि बिरोध रिसहि पै होई रिस मारै, तेहि मार न कोई
+
रानी आइ धाय के पासा सुआ मुआ सेवँर कै आसा <br>
जेहि रिस कै मरिए, रस जीजै सो रस तजि रिस कबहुँ कीजै
+
परा प्रीति-कंचन महँ सीसा बिहरि मिलै, स्याम पै दीसा <br>
कंत-सोहाग कि पाइय साधा । पावै सोइ जो ओहि चित बाँधा
+
कहाँ सोनार पास जेहि जाऊँ । देइ सोहाग करै एक ठाऊँ <br><br>
  
रहै जो पिय के आयसु औ बरतै होइ हीन
+
मैं पिउ -प्रीति भरोसे गरब कीन्ह जिउ माँह <br>
सोइ चाँद अस निरमल, जनम न होइ मलीन ॥8॥
+
तेहि रिस हौं परहेली, रूसेउ नागर नाहँ ॥7॥<br><br>
  
जुआ-हारि समुझी मन रानी । सुआ दीन्ह राजा कहुँ आनी ॥
+
उतर धाय तब दीन्ह रिसाई । रिस आपुहि, बुधि औरहि खाई ॥<br>
मानु पीय ! हौं गरब न कीन्हा । कंत तुम्हार मरम मैं लीन्हा ॥
+
मैं जो कहा रिस जिनि करु बाला । को न गयउ एहि रिस कर घाला ?॥<br>
सेवा करै जो बरहौ मासा । एतनिक औगुन करहु बिनासा ॥
+
तू रिसभरी न देखेसि आगू । रिस महँ काकर भयउ सोहागू ?॥<br>
जौं तुम्ह देइ नाइ कै गीवा । छाँडहुँ नहिं बिनु मारे जीवा ॥
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जेहि रिस तेहि रस जोगे न जाई । बिनु रस हरदि होइ पियराई ॥<br>
मिलतहु महँ जनु अहौ निनारे । तुम्ह सौं अहै अदेस, पियारे !॥
+
बिरसि बिरोध रिसहि पै होई । रिस मारै, तेहि मार न कोई ॥<br>
मैं जानेउँ तुम्ह मोही माहाँ । देखौं ताकि तौ हौ सब पाहाँ ॥
+
जेहि रिस कै मरिए, रस जीजै । सो रस तजि रिस कबहुँ न कीजै ॥<br>
का रानी, का चेरी कोई । जा कहँ मया करहु भल सोई ॥
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कंत-सोहाग कि पाइय साधा । पावै सोइ जो ओहि चित बाँधा ॥<br><br>
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 +
रहै जो पिय के आयसु औ बरतै होइ हीन ।<br>
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सोइ चाँद अस निरमल, जनम न होइ मलीन ॥8॥<br><br>
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जुआ-हारि समुझी मन रानी । सुआ दीन्ह राजा कहुँ आनी ॥<br>
 +
मानु पीय ! हौं गरब न कीन्हा । कंत तुम्हार मरम मैं लीन्हा ॥<br>
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सेवा करै जो बरहौ मासा । एतनिक औगुन करहु बिनासा ॥<br>
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जौं तुम्ह देइ नाइ कै गीवा । छाँडहुँ नहिं बिनु मारे जीवा ॥<br>
 +
मिलतहु महँ जनु अहौ निनारे । तुम्ह सौं अहै अदेस, पियारे !॥<br>
 +
मैं जानेउँ तुम्ह मोही माहाँ । देखौं ताकि तौ हौ सब पाहाँ ॥<br>
 +
का रानी, का चेरी कोई । जा कहँ मया करहु भल सोई ॥<br><br>
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तुम्ह सौं कोइ न जीता, हारे बररुचि भोज ।<br>
 +
पहिलै आपु जो खोवै करै तुम्हार सो खोज ॥9॥<br><br>
  
तुम्ह सौं कोइ न जीता, हारे बररुचि भोज ।
 
पहिलै आपु जो खोवै करै तुम्हार सो खोज ॥9॥
 
  
  
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(1) ओपनिवारी = चमकानेवाली । बानि =वर्ण । कसि = कसौटी पर कसकर ।
 
(1) ओपनिवारी = चमकानेवाली । बानि =वर्ण । कसि = कसौटी पर कसकर ।
 
लोनी, लावण्यमयी, सुंदरी । आन =शपथ, कसम ।  
 
लोनी, लावण्यमयी, सुंदरी । आन =शपथ, कसम ।  
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(2) सौंधे = सुगंध से ।
 
(2) सौंधे = सुगंध से ।
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(3) तमचूर = ताम्र
 
(3) तमचूर = ताम्र
 
चूड, मुर्गा । "शब्द न देइ....तमचूरू" अर्थात मुर्गा कहीं पद्मावती-रूपी प्रभात की  
 
चूड, मुर्गा । "शब्द न देइ....तमचूरू" अर्थात मुर्गा कहीं पद्मावती-रूपी प्रभात की  
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नागमती के वाक्य से शुक के शत्रु होने की ध्वनि निकलती है । `कमल' में पद्मावती की  
 
नागमती के वाक्य से शुक के शत्रु होने की ध्वनि निकलती है । `कमल' में पद्मावती की  
 
ध्वनि है ।  
 
ध्वनि है ।  
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(4) बिसरामी = मनोरंजन की वस्तु । खंडित बैरागू =बैराग्य में चूक गया  
 
(4) बिसरामी = मनोरंजन की वस्तु । खंडित बैरागू =बैराग्य में चूक गया  
 
इससे तोते का जन्म पाया । काऊ = कभी । मकु = शायद, कदाचित । तुरय = तुरग, घोडा ।  
 
इससे तोते का जन्म पाया । काऊ = कभी । मकु = शायद, कदाचित । तुरय = तुरग, घोडा ।  
 
ताऊ= उसकी । हरि = बंदर । तुरय...जाए = कहते हैं कि घुडसाल में बंदर रखने से घोडे  
 
ताऊ= उसकी । हरि = बंदर । तुरय...जाए = कहते हैं कि घुडसाल में बंदर रखने से घोडे  
 
नीरोग रहते हैं, उनका रोग बंदर पर जाता है । सेइ = वे ही । हत्या और पाप ही ।
 
नीरोग रहते हैं, उनका रोग बंदर पर जाता है । सेइ = वे ही । हत्या और पाप ही ।
 +
 
(5) कूट = कालकूट, विष । कूटे =कूट कूटकर भरे हुए  
 
(5) कूट = कालकूट, विष । कूटे =कूट कूटकर भरे हुए  
 
बैसारिये = बैठाइए ।  
 
बैसारिये = बैठाइए ।  
 +
 
(6) तुम्ह खंडित = तुमने खंडित या नष्ट किया । सरेख =सज्ञान,
 
(6) तुम्ह खंडित = तुमने खंडित या नष्ट किया । सरेख =सज्ञान,
 
चतुर ,। मती = विचार करके ।  
 
चतुर ,। मती = विचार करके ।  
 +
 
(7) दोहाग = दुर्भाग्य । विरचि = अनुरक्त होकर ।  
 
(7) दोहाग = दुर्भाग्य । विरचि = अनुरक्त होकर ।  
 
देइ सोहाग (क) सौभाग्य, (ख) सोहागा दे ।
 
देइ सोहाग (क) सौभाग्य, (ख) सोहागा दे ।
 
परहेली = अवहेलना की, बेपरवाही की ।  
 
परहेली = अवहेलना की, बेपरवाही की ।  
 +
 
(8) आगू = आगम, परिणाम ।  
 
(8) आगू = आगम, परिणाम ।  
 
जोग न जाई =रक्षा नहीं किया जाता । बिरस = अनबन । साधा = साध या लालसा मात्र से ।
 
जोग न जाई =रक्षा नहीं किया जाता । बिरस = अनबन । साधा = साध या लालसा मात्र से ।
 
हीन = दीन, नम्र ।
 
हीन = दीन, नम्र ।

02:06, 16 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ: पद्मावत / मलिक मोहम्मद जायसी


दिन दस पाँच तहाँ जो भए । राजा कतहुँ अहेरै गए ॥
नागमती रूपवंती रानी । सब रनिवास पाट-परधानी ॥
कै सिंगार कर दरपन लीन्हा । दरसन देखि गरब जिउ कीन्हा ॥
बोलहु सुआ पियारे-नाहाँ । मोरे रूप कोइ जग माहाँ ?॥
हँसत सुआ पहँ आइ सो नारी । दीन्ह कसौटी ओपनिवारी ॥
सुआ बानि कसि कहु कस सोना । सिंघलदीप तोर कस लोना ?॥
कौन रुप तोरी रुपमनी । दहुँ हौं लोनि, कि वै पदमिनी ?॥

जो न कहसि सत सुअटा तेहि राजा कै आन ।
है कोई एहि जगत महँ मोरे रूप समान ॥1॥

सुमिरि रूप पदमावति केरा । हँसा सुआ, रानी मुख हेरा ॥
जेहि सरवर महँ हंस न आवा । बगुला तेहि सरस हंस कहावा ॥
दई कीन्ह अस जगत अनूपा । एक एक तें आगरि रूपा ॥
कै मन गरब न छाजा काहू । चाँद घटा औ लागेउ राहू ॥
लोनि बिलोनि तहाँ को कहै । लोनी सोई कंत जेहि चहै ॥
का पूछहु सिंघल कै नारी । दिनहिं न पूजै निसि अँधियारी ॥
पुहुप सुवास सो तिन्ह कै काया । जहाँ माथ का बरनौं पाया ?॥

गढी सो सोने सोंधे, भरी सो रूपै भाग ।
सुनत रूखि भइ रानी, हिये लोन अस लाग ॥2॥

जौ यह सुआ मँदिर महँ अहई । कबहुँ बात राजा सौं कहई ॥
सुनि राजा पुनि होइ वियोगी । छाँडे राज, चलै होइ जोगी ॥
बिख राखिय नहिं, होइ अँकूरू । सबद न देइ भोर तमचूरू ॥
धाय दामिनी बेगि हँकारी । ओहि सौंपा हीये रिस भारी ॥
देखु सुआ यह है मँदचाला । भएउ न ताकर जाकर पाला ॥
मुख कह आन, पेट बस आना । तेहि औगुन दस हाट बिकाना ॥
पंखि न राखिय होइ कुभाखी । लेइ तहँ मारू जहाँ नहिं साखी ॥

जेहि दिन कहँ मैं डरति हौं, रैनि छपावौं सूर ।
लै चह-दीन्ह कवँल कहँ, मोकहँ होइ मयूर ॥3॥

धाय सुआ लेइ मारै गई । समुझि गियान हिये मति भई ॥
सुआ सो राजा कर बिसरामी । मारि न जाइ चहै जेहि स्वामी ॥
यह पंडित खंडित बैरागू । दोष ताहि जेहि सूझ न आगू ॥
जो तिरिया के काज न जाना । परै धोख, पाछे पछिताना ॥
नागमति नागिनि-बुधि ताऊ । सुआ मयूर होइ नहिं काऊ ॥
जौ न कंत के आयसु माहीं । कौन भरोस नारि कै वाही ?॥
मकु यह खोज निसि आए । तुरय-रोग हरि-माथे जाए ॥

दुइ सो छपाए ना छपै एक हत्या एक पाप ।
अंतहि करहिं बिनास लेइ, सेइ साखी देइँ आप ॥4॥

राखा सुआ, धाय मति साजा । भएउ कौज निसि आएउ राजा ॥
रानी उतर मान सौं दीन्हा । पंडित सुआ मजारी लीन्हा ॥
मैं पूछा सिंघल पदमिनी । उतर दीन्ह तुम्ह, को नागिनी ?॥
वह जस दिन, तुम निसि अँधियारी । कहाँ बसंत; करील क बारी ॥
का तोर पुरुष रैनि कर राऊ । उलू न जान दिवस कर भाऊ ॥
का वह पंखि कूट मुँह कूटे । अस बड बोल जीभ मुख छोटे ॥
जहर चुवै जो जो कह बाता । अस हतियार लिए मुख राता ॥

माथे नहिं बैसारिय जौ सुठि सुआ सलोन ।
कान टुटैं जेहि पहिरे का लेइ करब सो सोन ?॥5॥

राजै सुनि वियोग तस माना । जैसे हिय विक्रम पछिताना ॥
बह हीरामन पंडित सूआ । जो बोलै मुख अमृत चूआ ॥
पंडित तुम्ह खंडित निरदोखा । पंडित हुतें परै नहिं धोखा ॥
पंडित केरि जीभ मुख सूधी । पंडित बात न कहै बिरूधी ॥
पंडित सुमति देइ पथ लावा । जो कुपंथि तेहि पँडित न भावा ॥
पंडित राता बदन सरेखा । जो हत्यार रुहिर सो देखा ॥
की परान घट आनहु मती। की चलि होहु सुआ सँग सती ॥

जिनि जानहु कै औगुन मँदिर सोइ सुखराज ।
आयसु मेटें कंत कर काकर भा न अकाज ?॥6॥

चाँद जैस धनि उजियारि अही । भा पिउ-रोस, गहन अस गही ॥
परम सोहाग निबाहि न पारी । भा दोहाग सेवा जब हारी ॥
एतनिक दोस बिरचि पिउ रूठा । जो पिउ आपन कहै सो झूठा ॥
ऐसे गरब न भूलै कोई । जेहि डर बहुत पियारी सोई ॥
रानी आइ धाय के पासा । सुआ मुआ सेवँर कै आसा ॥
परा प्रीति-कंचन महँ सीसा । बिहरि न मिलै, स्याम पै दीसा ॥
कहाँ सोनार पास जेहि जाऊँ । देइ सोहाग करै एक ठाऊँ ॥

मैं पिउ -प्रीति भरोसे गरब कीन्ह जिउ माँह ।
तेहि रिस हौं परहेली, रूसेउ नागर नाहँ ॥7॥

उतर धाय तब दीन्ह रिसाई । रिस आपुहि, बुधि औरहि खाई ॥
मैं जो कहा रिस जिनि करु बाला । को न गयउ एहि रिस कर घाला ?॥
तू रिसभरी न देखेसि आगू । रिस महँ काकर भयउ सोहागू ?॥
जेहि रिस तेहि रस जोगे न जाई । बिनु रस हरदि होइ पियराई ॥
बिरसि बिरोध रिसहि पै होई । रिस मारै, तेहि मार न कोई ॥
जेहि रिस कै मरिए, रस जीजै । सो रस तजि रिस कबहुँ न कीजै ॥
कंत-सोहाग कि पाइय साधा । पावै सोइ जो ओहि चित बाँधा ॥

रहै जो पिय के आयसु औ बरतै होइ हीन ।
सोइ चाँद अस निरमल, जनम न होइ मलीन ॥8॥

जुआ-हारि समुझी मन रानी । सुआ दीन्ह राजा कहुँ आनी ॥
मानु पीय ! हौं गरब न कीन्हा । कंत तुम्हार मरम मैं लीन्हा ॥
सेवा करै जो बरहौ मासा । एतनिक औगुन करहु बिनासा ॥
जौं तुम्ह देइ नाइ कै गीवा । छाँडहुँ नहिं बिनु मारे जीवा ॥
मिलतहु महँ जनु अहौ निनारे । तुम्ह सौं अहै अदेस, पियारे !॥
मैं जानेउँ तुम्ह मोही माहाँ । देखौं ताकि तौ हौ सब पाहाँ ॥
का रानी, का चेरी कोई । जा कहँ मया करहु भल सोई ॥

तुम्ह सौं कोइ न जीता, हारे बररुचि भोज ।
पहिलै आपु जो खोवै करै तुम्हार सो खोज ॥9॥


(1) ओपनिवारी = चमकानेवाली । बानि =वर्ण । कसि = कसौटी पर कसकर । लोनी, लावण्यमयी, सुंदरी । आन =शपथ, कसम ।

(2) सौंधे = सुगंध से ।

(3) तमचूर = ताम्र चूड, मुर्गा । "शब्द न देइ....तमचूरू" अर्थात मुर्गा कहीं पद्मावती-रूपी प्रभात की आवाज न दे कि हे राजा उठ! दिन की ओर देख । कवि ऊपर कह चुका है कि "दिनहिं न पूजै निसि अँधियारी "। धाय = दाई, धात्री । दामिनी = दासी का नाम । मयूर = मोर । मोर नाग का शत्रु है, नागमती के वाक्य से शुक के शत्रु होने की ध्वनि निकलती है । `कमल' में पद्मावती की ध्वनि है ।

(4) बिसरामी = मनोरंजन की वस्तु । खंडित बैरागू =बैराग्य में चूक गया इससे तोते का जन्म पाया । काऊ = कभी । मकु = शायद, कदाचित । तुरय = तुरग, घोडा । ताऊ= उसकी । हरि = बंदर । तुरय...जाए = कहते हैं कि घुडसाल में बंदर रखने से घोडे नीरोग रहते हैं, उनका रोग बंदर पर जाता है । सेइ = वे ही । हत्या और पाप ही ।

(5) कूट = कालकूट, विष । कूटे =कूट कूटकर भरे हुए बैसारिये = बैठाइए ।

(6) तुम्ह खंडित = तुमने खंडित या नष्ट किया । सरेख =सज्ञान, चतुर ,। मती = विचार करके ।

(7) दोहाग = दुर्भाग्य । विरचि = अनुरक्त होकर । देइ सोहाग (क) सौभाग्य, (ख) सोहागा दे । परहेली = अवहेलना की, बेपरवाही की ।

(8) आगू = आगम, परिणाम । जोग न जाई =रक्षा नहीं किया जाता । बिरस = अनबन । साधा = साध या लालसा मात्र से । हीन = दीन, नम्र ।