भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मोती कभी पलकों से गिराए नहीं हमने... / देवी नांगरानी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} सपने कभी आंखों मे बसाए नहीं हमने बेका...)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
  
 
सपने कभी आंखों मे बसाए नहीं हमने
 
सपने कभी आंखों मे बसाए नहीं हमने
 +
 
बेकार के ये नाज़ उठाए नहीं हमने.
 
बेकार के ये नाज़ उठाए नहीं हमने.
 +
  
 
दौलत को तेरे दर्द की रक्खा सहेज कर
 
दौलत को तेरे दर्द की रक्खा सहेज कर
 +
 
मोती कभी पलकों से गिराए नहीं हमने.
 
मोती कभी पलकों से गिराए नहीं हमने.
 +
  
 
आई जो तेरी याद तो लिखने लगी गज़ल
 
आई जो तेरी याद तो लिखने लगी गज़ल
 +
 
रो रो के गीत औरों को सुनाए नहीं हमने.
 
रो रो के गीत औरों को सुनाए नहीं हमने.
 +
  
 
है सूखा पड़ा आज तो, कल आयेगा सैलाब
 
है सूखा पड़ा आज तो, कल आयेगा सैलाब
 +
 
ख़ेमे किसी भी जगह लगाए नहीं हमने.
 
ख़ेमे किसी भी जगह लगाए नहीं हमने.
 +
  
 
इतने फ़रेब खाए हैं ‘देवी’ बहार में
 
इतने फ़रेब खाए हैं ‘देवी’ बहार में
 +
 
जूड़े में गुलाब अब के लगाये नहीं हमने.
 
जूड़े में गुलाब अब के लगाये नहीं हमने.

11:45, 17 अक्टूबर 2007 का अवतरण

सपने कभी आंखों मे बसाए नहीं हमने

बेकार के ये नाज़ उठाए नहीं हमने.


दौलत को तेरे दर्द की रक्खा सहेज कर

मोती कभी पलकों से गिराए नहीं हमने.


आई जो तेरी याद तो लिखने लगी गज़ल

रो रो के गीत औरों को सुनाए नहीं हमने.


है सूखा पड़ा आज तो, कल आयेगा सैलाब

ख़ेमे किसी भी जगह लगाए नहीं हमने.


इतने फ़रेब खाए हैं ‘देवी’ बहार में

जूड़े में गुलाब अब के लगाये नहीं हमने.