भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=मीठी सी चुभन/ '...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:26, 2 जून 2013 के समय का अवतरण
फ़न तलाशे है दहकते हुए जज़्बात का रंग
देख फीका न पड़े आज मुलाक़ात का रंग
हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में
कितना कच्चा है मिरे दोस्त तिरे हाथ का रंग
है ये बस्ती तिरे भीगे हुए कपड़ों की तरह
तेरे इस्नान सा लगता है ये बरसात का रंग
शायरी बोलूं इसे या के मैं संगीत कहूं
एक झरने सा उतरता है तिरी बात का रंग
ये शहर शहरे-मुहब्बत की अलामत था कभी
इसपे चढ़ने लगा किस किस के ख़्यालात का रंग
है कोई रंग जो हो इश्के़ खुदा से बेहतर
अपने आपे में चढ़ा लो उसी इक ज़ात का रंग