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"बदली / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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मुट्ठी में बिजलियों की जलन
 
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और अपनी चीत्कार से
 
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भाल पटक
 
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सीने में उमड़ी
 
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घोर घटा श्यामल धुँआरी....।
 
घोर घटा श्यामल धुँआरी....।
 
चुपना न चाहता जी
 
चुपना न चाहता जी
चाहती है मेटना निज
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चाहती निज मेटना
 
तड़पती और बरसती है
 
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वह विवश
 
वह विवश
 
सिसक-सिसक
 
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06:05, 10 जून 2013 के समय का अवतरण

बदली

आज फिर....?
लो, फिर आज
पगली बदली
रोई है आँगन में
बिलख-बिलख
बार-बार
भीगी मिट्टी में गाल रगड़
लस्त-पस्त छितरे बालों से
हथेलियों पर भाल मसल।
कीचड़ के दाग हैं
तड़पते नखों में,
मुट्ठी में बिजलियों की जलन
और अपनी चीत्कार से
कड़कड़ा कर
भाल पटक
सीने में उमड़ी
घोर घटा श्यामल धुँआरी....।
चुपना न चाहता जी
चाहती निज मेटना
तड़पती और बरसती है
वह विवश
सिसक-सिसक
पत्थरों पर---।