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"भूकंप / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

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मेरे हृदय की कोमलता को
 
मेरे हृदय की कोमलता को
 
 
अपने क्रूर हाथों से
 
अपने क्रूर हाथों से
 
 
बेध कर
 
बेध कर
 
 
ऊँची अट्टालिकाओं का निर्माण किया
 
ऊँची अट्टालिकाओं का निर्माण किया
  
 
उखाड़ कर प्राणवाही पेड़-पौधे
 
उखाड़ कर प्राणवाही पेड़-पौधे
 
 
बो दिए धुआँ उगलते कल-कारखाने
 
बो दिए धुआँ उगलते कल-कारखाने
 
 
उत्पादन के सामान सजाए
 
उत्पादन के सामान सजाए
 
 
मेरे पोर-पोर को बींध कर
 
मेरे पोर-पोर को बींध कर
 
 
स्तंभ गाड़े
 
स्तंभ गाड़े
 
 
विद्युतवाही तारों के  
 
विद्युतवाही तारों के  
  
 
जलवाही धारों को बाँध दिया।
 
जलवाही धारों को बाँध दिया।
 
 
तुम्हारी कुदालों, खुरपियों, फावड़ों,
 
तुम्हारी कुदालों, खुरपियों, फावड़ों,
 
 
मशीनों, आरियों, बुलडोजरों से
 
मशीनों, आरियों, बुलडोजरों से
 
 
कँपती थरथराती रही मैं ।
 
कँपती थरथराती रही मैं ।
  
  
 
तुम्हारे घरों की नींव
 
तुम्हारे घरों की नींव
 
 
मेरी बाहों पर थी
 
मेरी बाहों पर थी
 
 
अपने घर के मान में
 
अपने घर के मान में
 
 
सरो-सामान में
 
सरो-सामान में
 
 
भूल गए तुम ।
 
भूल गए तुम ।
  
  
 
मैं थोड़ा हिली  
 
मैं थोड़ा हिली  
 
 
तो लो
 
तो लो
 
 
भरभरा कर गिर गए  
 
भरभरा कर गिर गए  
 
 
तुम्हारे घर ।
 
तुम्हारे घर ।
 
 
फटा तो हृदय  
 
फटा तो हृदय  
 
 
मेरा ही ।
 
मेरा ही ।

22:55, 10 जून 2013 का अवतरण

मेरे हृदय की कोमलता को
अपने क्रूर हाथों से
बेध कर
ऊँची अट्टालिकाओं का निर्माण किया

उखाड़ कर प्राणवाही पेड़-पौधे
बो दिए धुआँ उगलते कल-कारखाने
उत्पादन के सामान सजाए
मेरे पोर-पोर को बींध कर
स्तंभ गाड़े
विद्युतवाही तारों के

जलवाही धारों को बाँध दिया।
तुम्हारी कुदालों, खुरपियों, फावड़ों,
मशीनों, आरियों, बुलडोजरों से
कँपती थरथराती रही मैं ।


तुम्हारे घरों की नींव
मेरी बाहों पर थी
अपने घर के मान में
सरो-सामान में
भूल गए तुम ।


मैं थोड़ा हिली
तो लो
भरभरा कर गिर गए
तुम्हारे घर ।
फटा तो हृदय
मेरा ही ।