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बस्ता / विशाल श्रीवास्तव

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{{KKRachna
|रचनाकार=विशाल श्रीवास्तव}}  '''बस्ता'''
बस्ते में बच्चे रख रहे हैं<br>
ताज़ा उगी सुबह की धूप का टुकड़ा<br>
जैसे वे अपनी किताबों को<br>
किसी अदृश्य ऍंधेरे अधेरे से बचाना चाहते हैं<br>
वैसे, किताबों के बारे में<br>
सबसे ज्यादा जानकारी है बस्ते के पास<br>
उसी ने सबसे ज्यादा बचाया है साहित्य को<br>
गीला कर देने वाली बारिश और तेज धूप से<br>
तुलसी, शेक्सपियर और मिल्टन को की लगभग एक साथ<br>
बस्ते को ही सबसे अधिक चिंता है<br>
नाजुक पीठ और मासूम दिमाग पर पड़ रहे बोझ की<br>
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