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'नुशूर' वाहिदी

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|नाम='नुशूर' वाहिदी
|उपनाम=
|जन्म=1912
|जन्मस्थान=
|मृत्यु=1983
|कृतियाँ=
|विविध=
{{KKShayar}}
* [[ / 'नुशूर' वाहिदी]]
आग़ोश-ए-रंग-ओ-बू के फ़साने में कुछ नहीं
भला कब देख सकता हूँ के ग़म ना-काम हो जाए
चिलमन से दो दामन के किनारे निकल आए
हाथ से दुनिया निकलती जायेगी
हसरत-ए-फैसला-ए-दर्द-ए-जिगर बाकी है
मैं शाद हूँ तो ज़माने में शाद-मानी है
सहर और शाम से कुछ यूँ गुज़रता जा रहा हूँ मैं
यूँ ही ठहर ठहर के मैं रोता चला गया
नई दुनिया मुजस्सम दिल-कशी मालूम होती है
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