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"हैरतों के सिल-सिले / अहमद नदीम क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए<BR> | हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए<BR> |
23:17, 27 जनवरी 2008 का अवतरण
हैरतों के सिल-सिले सोज़-ए-निहां तक आ गए
हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गए
ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था
आप किस की जुस्तजू में गुलिस्तां तक आ गए
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गिरेबां का शऊर आ जाएगा
तुम वहां तक आ तो जाओ हम जहां तक आ गए
उन की पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हंसी
कि़स्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहां तक आ गए