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पवन के घोड़ों पर सवार
दूर देश से आते हैं
जल भरी ढेरों मशकें लाते हैं
जब तक कुछ सोचे-समझे यह धरती
उसके साथ होली खेल आगे बढ़ जाते हैं
ख़ुद को आकाश का सम्बन्धी बतलाते हैं
(रचनाकाल : 1981)