भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अशवों को चैन ही नहीं आफ़त किये बगैर / जोश मलीहाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>
 
अशवों को चैन नहीं आफ़त किये बगैर
 
अशवों को चैन नहीं आफ़त किये बगैर

21:54, 5 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

अशवों को चैन नहीं आफ़त किये बगैर
तुम, और मान जाओ शरारत किये बगैर!

अहल-ए-नज़र को यार दिखाना राह-ए-वफ़ा
ऐ काश! ज़िक्र-ए-दोज़ख-ओ-जन्नत किये बगैर

अब देख उस का हाल कि आता न था करार
खुद तेरे दिल को, जिस पे इनायत किये बगैर

ऐ हमनशीं मुहाल है नासेह का टालना
यह, और यहाँ से जाएँ नसीहत किये बगैर

तुम कितने तुन्द-खू हो कि पहलू से आज तक
एक बार भी उठे न क़यामत किये बगैर