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"मां अर म्हैं /अंकिता पुरोहित" के अवतरणों में अंतर

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('<poem>मां कद झलाया सगळा बरत ठाह नीं पण करूं म्हैं नेम सू...' के साथ नया पन्ना बनाया)
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17:25, 6 जुलाई 2013 का अवतरण

मां कद झलाया
सगळा बरत
ठाह नीं पण करूं
म्हैं नेम सूं,
बरत री कथावां
मां रै कंठां सूं निकळ’र
कद बसगी म्हारै कंठां
है ज्यूं री ज्यूं
ठाह ई नीं पड़ी!
 
जित्ता गीत
मां नैं आवै
बित्ता ई आवै म्हनैं
बियां ई जुड़ै जाड़ा
बियां ई दूखै माथो
बियां ई चालै पगां में रीळ
बियां ई जीमूं
सगळां रै जीम्यां पछै!
 
मां !
थूं कद बैठगी
ऊंडै आय’र म्हारै
है ज्यूं री ज्यूं?