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"घूँघट के पट / कबीर" के अवतरणों में अंतर

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(New page: कवि: कबीर Category:कविताएँ Category:कबीर~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* घूँघट का पट खोल रे,तो...)
 
 
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घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे।
  
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घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥
  
घूँघट का पट खोल रे,तोको पीव मिलेंगे।
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धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे।
  
घट-घट मे वह सांई रमता,कटुक वचन मत बोल रे॥
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सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।।
  
धन जोबन का गरब न कीजै,झूठा पचरंग चोल रे।
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जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे।
  
सुन्न महल मे दियना बारिले,आसन सों मत डोल रे।।
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कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥
 
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जागू जुगुत सों रंगमहल में,पिय पायो अनमोल रे।
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कह कबीर आनंद भयो है,बाजत अनहद ढोल रे॥
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13:01, 7 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

घूँघट का पट खोल रे, तोको पीव मिलेंगे।

घट-घट मे वह सांई रमता, कटुक वचन मत बोल रे॥

धन जोबन का गरब न कीजै, झूठा पचरंग चोल रे।

सुन्न महल मे दियना बारिले, आसन सों मत डोल रे।।

जागू जुगुत सों रंगमहल में, पिय पायो अनमोल रे।

कह कबीर आनंद भयो है, बाजत अनहद ढोल रे॥