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"दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ / कबीर" के अवतरणों में अंतर

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दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥ <br><br>
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दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥
  
पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ ।<br>
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काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥<br><br>
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काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥
  
दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ ।<br>
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दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥<br><br>
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टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥
  
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बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ ।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ, माँगे भीख न पैहौ ॥ ३॥<br><br>
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ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ, माँगे भीख न पैहौ ॥ ३॥
  
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तेली के घर बैला होइहौ, आॅंखिन ढाँपि ढॅंपैहौउ ।
कोस पचास घरै माँ चलिहौ, बाहर होन न पैहौ ॥ ४॥<br><br>
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कोस पचास घरै माँ चलिहौ, बाहर होन न पैहौ ॥ ४॥
  
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बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ ॥ ५॥<br><br>
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बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ ॥ ५॥
  
धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ ।<br>
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धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ ।
लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुँचैंहौ ॥ ६॥<br><br>
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लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुँचैंहौ ॥ ६॥
  
पंछिन माँ तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ ।<br>
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पंछिन माँ तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ ।
उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ ॥ ७॥<br><br>
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उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ ॥ ७॥
  
सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ ।<br>
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सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ ।
कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ ॥ ८॥<br><br>
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कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ ॥ ८॥

13:24, 7 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ ॥

पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ।
काँटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ ॥ १॥

दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ ।
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ ॥ २॥

बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ ।
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ, माँगे भीख न पैहौ ॥ ३॥

तेली के घर बैला होइहौ, आॅंखिन ढाँपि ढॅंपैहौउ ।
कोस पचास घरै माँ चलिहौ, बाहर होन न पैहौ ॥ ४॥

पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ, बिन तोलन बोझ लदैहौ ।
बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ ॥ ५॥

धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ ।
लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुँचैंहौ ॥ ६॥

पंछिन माँ तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ ।
उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ ॥ ७॥

सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ ।
कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ ॥ ८॥