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"इक उम्र दिल की घात से तुझ पर निगाह की / मजीद 'अमज़द'" के अवतरणों में अंतर

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07:43, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

इक उम्र दिल की घात से तुझ पर निगाह की
तुझ पर तेरी निगाह से छुप कर निगाह की

रूहों में जलती आग ख़यालों में खिलते फूल
सारी सदाकतें किसी काफ़िर निगाह की

जब भी ग़म-ए-ज़माना से आँखें हुईं दो-चार
मुँह फेर कर तबस्सुम-ए-दिल पर निगाह की

बागें खिंची मसाफ़तें कड़की फ़रस रूके
माज़ी की रथ से किस ने पलट कर निगाह की

दोनों का रब्त है मेरी मौज-ए-ख़िराम से
लग्ज़िश ख़याल की हो के ठोकर निगाह की