भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ढीठ चांदनी / धर्मवीर भारती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKPrasiddhRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
 
आज-कल तमाम रात
 
आज-कल तमाम रात
पंक्ति 18: पंक्ति 19:
 
बाहर ले जाती है
 
बाहर ले जाती है
 
घंटो बतियाती है
 
घंटो बतियाती है
 +
 
ठंडी-ठंडी छत पर
 
ठंडी-ठंडी छत पर
 
लिपट-लिपट जाती है
 
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मामाती है
+
विह्वल मदमाती है
 
बावरिया बिना बात?
 
बावरिया बिना बात?
  
 
आजकल तमाम रात
 
आजकल तमाम रात
चांदनी जगाती है
+
चाँदनी जगाती है
 
</poem>
 
</poem>

19:12, 9 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

आज-कल तमाम रात
चांदनी जगाती है

मुँह पर दे-दे छींटे
अधखुले झरोखे से
अन्दर आ जाती है
दबे पाँव धोखे से

माथा छू
निंदिया उचटाती है
बाहर ले जाती है
घंटो बतियाती है

ठंडी-ठंडी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मदमाती है
बावरिया बिना बात?

आजकल तमाम रात
चाँदनी जगाती है