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आज-कल तमाम रात
बाहर ले जाती है
घंटो बतियाती है
 
ठंडी-ठंडी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मामाती मदमाती है
बावरिया बिना बात?
आजकल तमाम रात
चांदनी चाँदनी जगाती है
</poem>
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