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साँस का पुतला / अज्ञेय

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|संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय
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कब मन बोलता है ?
साँस का पुतला हूँ मैं :
जरा से बँधा हूँ और
मरण को दे दिया गया हूँ :
पर एक जो प्यार है न, उसी के द्वारा
जीवनमुक्त मैं किया गया हूँ ।
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