भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"औरतों के नाम / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(वर्तनी के सम्पादन/ ३-४ कविताएँ एक ही पन्ने पर थीं)
छो (कृपया पुनः इससे छेड़छाड़ न की जाए। मैंने स्वयं अपनी कविता को फायनल किया है।)
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी  
 
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी  
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
कभी पूरी नींद तक भी
 
कभी पूरी नींद तक भी
न सोने वाली औरतो !
+
न सोने वाली औरतो!
 
मेरे पास आओ,
 
मेरे पास आओ,
 
दर्पण है मेरे पास  
 
दर्पण है मेरे पास  
पंक्ति 16: पंक्ति 17:
 
कैसे मुस्कुरा लेते हैं इतना,
 
कैसे मुस्कुरा लेते हैं इतना,
  
 
+
और, आप!
और, आप !
+
 
जरा गौर से देखिए
 
जरा गौर से देखिए
 
सुराहीदार गर्दन के  
 
सुराहीदार गर्दन के  
पंक्ति 23: पंक्ति 23:
 
के नीचे
 
के नीचे
 
लाल से नीले
 
लाल से नीले
और नीले से हरे
+
नीले से हरे
 +
और हरे से काले होते
 
उँगलियों के निशान
 
उँगलियों के निशान
 
चुन्नियों में लिपटे
 
चुन्नियों में लिपटे
पंक्ति 29: पंक्ति 30:
 
आँचलों में सिमटे
 
आँचलों में सिमटे
 
नंगई सँवारते हैं।  
 
नंगई सँवारते हैं।  
 
  
 
टूटे पुलों के छोरों पर  
 
टूटे पुलों के छोरों पर  
 
तूफान पार करने की
 
तूफान पार करने की
उम्मीद लगाई औरतों !
+
उम्मीद लगाई औरतो !
 
जमीन धसक रही है
 
जमीन धसक रही है
 
पहाड़ दरक गए हैं
 
पहाड़ दरक गए हैं
बह गई हैं   - चौकियाँ
+
बह गई हैं- चौकियाँ
 
शाखें लगातार काँपती गिर रही हैं
 
शाखें लगातार काँपती गिर रही हैं
 
जंगल
 
जंगल
पंक्ति 42: पंक्ति 42:
 
पानी लगातार तुम्हारे डूबने की
 
पानी लगातार तुम्हारे डूबने की
 
साजिशों में लगा है,  
 
साजिशों में लगा है,  
 +
 
अंधेरे ने छीन ली है भले
 
अंधेरे ने छीन ली है भले
ऑंखों की देख  
+
आँखों की देख,
 
पर मेरे पास  
 
पर मेरे पास  
 
अभी भी बचा है
 
अभी भी बचा है
 
एक दर्पण
 
एक दर्पण
 
चमकीला।
 
चमकीला।
 +
</poem>

19:19, 18 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

कभी पूरी नींद तक भी
न सोने वाली औरतो!
मेरे पास आओ,
दर्पण है मेरे पास
जो दिखाता है
कि अक्सर फिर भी
औरतों की आँखें
खूबसूरत होती क्यों हैं,
चीखों-चिल्लाहटों भरे
बंद मुँह भी
कैसे मुस्कुरा लेते हैं इतना,

और, आप!
जरा गौर से देखिए
सुराहीदार गर्दन के
पारदर्शी चमड़े
के नीचे
लाल से नीले
नीले से हरे
और हरे से काले होते
उँगलियों के निशान
चुन्नियों में लिपटे
बुर्कों से ढँके
आँचलों में सिमटे
नंगई सँवारते हैं।

टूटे पुलों के छोरों पर
तूफान पार करने की
उम्मीद लगाई औरतो !
जमीन धसक रही है
पहाड़ दरक गए हैं
बह गई हैं- चौकियाँ
शाखें लगातार काँपती गिर रही हैं
जंगल
दल-दल बन गए हैं
पानी लगातार तुम्हारे डूबने की
साजिशों में लगा है,

अंधेरे ने छीन ली है भले
आँखों की देख,
पर मेरे पास
अभी भी बचा है
एक दर्पण
चमकीला।