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"म्हनैं ठाह है : एक / रमेश भोजक ‘समीर’" के अवतरणों में अंतर

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('<poem>म्हनैं ठाह है उतावळो है दुसासन आपवाळां रो चीर-हर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
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05:21, 19 जुलाई 2013 का अवतरण

म्हनैं ठाह है
उतावळो है दुसासन
आपवाळां रो
चीर-हरण खातर
अर आपां
हाथ माथै हाथ धर्यां
बैठां हां
एक-दूजै सूं अळघा
दूर.. दूर... दूर....
घणा-घणा दूर
कोसां रै आंतरै माथै
फगत उडीकां हां-
किसन नैं!